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जब BJP के आरके सिन्हा ने बाबरी मस्जिद कमेटी के नेता के लिए छोड़ी ट्रेन की सीट!

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नई दिल्ली। बीजेपी के संस्थापक सदस्य और पूर्व राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा का जन्मदिन 22 सितंबर को है। इस खास मौके पर हम आपको उनके जीवन का एक दिलचस्प किस्सा सुनाने जा रहे हैं, जो उन्होंने यूपीयूकेलाइव के एडिटर-इन-चीफ मुहम्मद फैजान के साथ खास बातचीत में साझा किया था। यह किस्सा न सिर्फ उनकी दरियादिली को दर्शाता है, बल्कि उस दौर की सामाजिक और वैचारिक बातचीत को भी उजागर करता है।

ट्रेन का वो यादगार सफर

आरके सिन्हा ने बातचीत में एक पुराना वाकया सुनाया। उन्होंने बताया कि एक बार वह और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रमुख नेता सय्यद शाहबुद्दीन एक ही ट्रेन के कूपे में सफर कर रहे थे। सिन्हा की सीट लोअर बर्थ थी, जबकि शाहबुद्दीन को अपर बर्थ मिली थी। शाहबुद्दीन के दामाद अफजल अमानुल्ला पटना के रहने वाले थे, और उनके परिवार से सिन्हा के अच्छे रिश्ते थे। अफजल के पिता पटना इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी में इंजीनियर थे, और सिन्हा के बड़े भाई वहां फाइनेंशियल एडवाइजर थे। दोनों परिवारों में गहरी दोस्ती थी।

सफर शुरू हुआ तो सिन्हा ने शाहबुद्दीन से कहा, “हुजूर, आप बुजुर्ग हैं, आप नीचे की सीट ले लीजिए, मैं ऊपर चला जाऊंगा।” शाहबुद्दीन ने उनकी इस दरियादिली की तारीफ की और कहा, “बड़ा शुक्रिया।”

खाने की मेज पर खुला दिल

जब खाने का वक्त आया, तो सिन्हा ने अपना टिफिन खोला और शाहबुद्दीन को साथ खाने का न्योता दिया। उन्होंने कहा, “मैं घर से शाकाहारी खाना लाया हूं, आप चाहें तो मेरे साथ खा सकते हैं।” शाहबुद्दीन ने हंसते हुए कहा, “चलो, आज तुम्हारे साथ ही खाते हैं।” दोनों ने मिलकर खाना खाया और फिर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।

मदरसे पर हुई गहरी बातचीत

बातचीत के दौरान सिन्हा ने शाहबुद्दीन से एक सवाल पूछा, “आप इतने पढ़े-लिखे इंसान हैं, मुस्लिम समुदाय का नेतृत्व कर रहे हैं, इसमें कोई दिक्कत नहीं। लेकिन आपके अपने बच्चे और नाती-पोते तो कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ते हैं, मदरसों में नहीं। फिर आप दूसरों को क्यों कहते हैं कि मदरसों में पढ़ाई करनी चाहिए?” इस सवाल पर शाहबुद्दीन हंस पड़े और बोले, “आप समझदार इंसान हैं, अब आपको क्या बताएं। ऐसा करना पड़ता है।” सिन्हा के इस सवाल और शाहबुद्दीन के जवाब ने उस दौर की वैचारिक बहस को एक नया रंग दिया।

यह किस्सा न सिर्फ आरके सिन्हा की सादगी और खुले दिल को दिखाता है, बल्कि यह भी बताता है कि कैसे दो अलग-अलग विचारधाराओं के लोग एक-दूसरे के साथ सम्मान और समझदारी से बातचीत कर सकते हैं।

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