बृजनन्दन राजू
लखनऊ,16 अगस्त (Udaipur Kiran) । श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन 1964 में मुंबई में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना हुई। 61 वर्षों की गौरवशाली यात्रा के कुछ अविस्मरणीय और अनूठे पड़ाव काे लेकर विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के केंद्रीय संगठन महामंत्री मिलिंद परांडे ने कहा कि हिन्दू जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठापना, सामाजिक कुरीतियों का निर्मूलन व हिन्दुओं में स्वाभिमान जागरण का काम विहिप कर रही है। हम चाहते हैं कि सरकार मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति, गोरक्षा एवं मतांतरण रोकने का कानून बनाये। मतांतरण और गोरक्षा समेत कई बिंदुओं पर मिलिंद परांडे से (Udaipur Kiran) ने विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं संपादित अंशः-
विहिप के समक्ष तब की और अब की चुनौतियों में क्या अन्तर आया है?
विश्व भर में जो हिन्दू समाज था उससे सम्पर्क की कोई व्यवस्था संगठित स्वरूप में पहले नहीं थी। विहिप की स्थापना के बाद वहां सम्पर्क की व्यवस्था बनी और आज व्यवस्थित रूप से विदेशों में जहां भी हिन्दू रह रहा है उनका संगठन खड़ा हो गया है। उन हिन्दूओं की जो आवश्यकताएं हैं जो खतरे हैं उनके बारे में सोचने वाले संगठन खड़े होते जा रहे हैं। मगर संकटों का स्वरूप भी बदला है। विहिप की स्थापना के बाद मतांतरण को रोकने के लिए एक सुनियोजित व्यवस्था खड़ी हो गयी। अनेक पूज्य संत इस काम में लग गये। इसके अलावा बहुत बड़ी मात्रा में ईसाई व मुसलमान जिनके पूर्वज हिन्दू थे उनकी घर वापसी की प्रक्रिया गति पकड़ रही है। यह दूसरा बहुत बड़ा अन्तर उस समय से इस समय में आया है। तीसरी अनेक सामाजिक कुरीतियां थी। छुआछूत व अस्पृश्यता का आरोप हिन्दू धर्म के ऊपर होता था। इसे दूर करने का काम व्यक्तिगत स्तर पर तो कुछ संतों ने किया था किन्तु सामूहिक रूप से विहिप की स्थापना के बाद 1969 में उडुप्पी में जो हिन्दू सम्मेलन हुआ, उस सम्मेलन में पहली बार सभी मत पंथ सम्प्रदायों के हजारों साधु-संतों की मौजूदगी में सभी जगद्गुरुओं और धर्माचार्यों ने ‘हिन्दवः सोदरा सर्वे’ का उद्घोष कर संपूर्ण हिंदू जगत से छुआछूत को मिटाने का आह्वान किया। हिन्दव: सोदर: सर्वे न हिन्दू पतितो भवेत। मम दीक्षा हिन्दू रक्षा मम मंत्र समानता: ।।
ऐसा कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पहले महाराज हर्षवर्धन के समय प्रयागराज में कुंभ के अवसर पर साधु-संत आखिरी बार एक मंच पर आये थे। उसके बाद सीधे विहिप के ही मंच पर सैकड़ों वर्षों के बाद 1966 में प्रयाग में सम्पन्न प्रथम विश्व हिन्दू सम्मेलन में चारों पूज्य शंकराचार्यों सहित हिंदुओं के सभी संप्रदायों और पंथों के संत एक मंच पर आये। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन से हिन्दू अस्मिता का जागरण हुआ।
देशभर में विहिप के कुल कितने सदस्य हैं?
विहिप में सदस्यता शब्द का प्रयोग नहीं करते हैं। हम यह कहते हैं जो हिन्दू है वह हमारा है। मगर विहिप में हित चिंतक की संकल्पना है। विहिप के अभी भारत में 72 लाख से ज्यादा हित चिंतक हैं। उसमें जो युवक है बजरंग दल के माध्यम से हमारा संपर्क 34 लाख युवकों से है। बहनों में दुर्गा वाहिनी व मातृशक्ति। इन दोनों के माध्यम से हमारा संपर्क 16 लाख से अधिक बहनों के साथ है। कुल मिलाकर 72 लाख से ज्यादा है। किसी भी जन संगठन के लिए यह बड़ा काम है। अभी हमारे 80 हजार स्थानों पर समितियां हैं।
देशभर में कुल कितने स्थानों पर सेवा कार्य चल रहे हैं?विश्व हिन्दू परिषद की मूल प्रकृति सेवा है। पहले सेवा कार्य सीमित क्षेत्रों में होता था। जैसे-जैसे हिन्दुत्व का प्रभाव बढ़ा अपनी जाति-भाषा से उठकर आज हिन्दू समाज सम्पूर्ण समाज के लिए सेवा कार्य कर रहा है। करोड़ों लोगों की शिक्षा की व्यवस्था हो रही है। हिन्दुत्व के लिए काम करने वाले अनेक संगठन हैं जैसे- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, वनवासी कल्याण आश्रम हैं। सभी के प्रयासों से आज सर्वाधिक 1.30 लाख से ज्यादा सेवा कार्य शिक्षा व स्वास्थ्य चल रहे हैं। सांगठनिक दृष्टि से विहिप ने 1000 से ज्यादा जिलों की रचना की है। अभी हमारे सेवा कार्य 500 से ज्यादा जिलों में पहुंच चुके हैं। हमारा लक्ष्य है कि अगले एक वर्ष में सभी जिलों तक हमारा सेवा कार्य पहुंच जाय।
कितने देशों में विहिप का कार्य है?विश्व के 30 देशों में विहिप का कार्य है। 65 से अधिक देशों में प्रत्यक्ष सम्पर्क है। अन्य देशों में स्वतंत्र एवं स्वायत्त संगठन है। वहां के कानून के हिसाब से अलग-अलग नाम से काम चलता है। विश्व हिन्दू परिषद की ऑस्ट्रेलिया इकाई भारत के बाहर का सबसे पुरानी इकाई है। वैसे ही नेपाल में अच्छा संगठन है। वहां के हिन्दुओं को मतांतरित होने से रोकने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। नेपाल के इतिहास में सर्वाधिक परावर्तन 1700 लोगों का इसी वर्ष में हुआ। इतनी बड़ी मात्रा में ईसाई से हिन्दू पहले कभी नहीं बने। नेपाल के 1100 गांवो में सेवा कार्य चल रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया की संसद ने वीएचपीए को बहत बड़े पैमाने पर सहयोग करना शुरू किया है। यह ईसाई देश है। इसके बाद भी राष्ट्र के नाम सहयोग करने वाला ऐसा सेवाधारी संगठन वीएचपीए है। वैसे न्यूजीलैंड में भी काम है। वहां के मूल निवासियों के बीच बड़ा कार्य है। इंग्लैंड, जर्मनी, नार्वे, मलेशिया और श्रीलंका में अपना अच्छा काम है।
विदेशों में रह रहे हिन्दुओं के समक्ष क्या चुनौतियां हैं?सब जगह अलग-अलग प्रकार की चुनौतियां हैं। यूरोप व अमेरिका में हिन्दू रह रहा है वह सबसे सुशिक्षित सबसे सम्पन्न है और वह उस देश के विकास में सबसे अधिक योगदान देने वाला है। मगर वहां अलग प्रकार की चुनौतियां हैं। भोगवाद का वातावरण है। ऐसे में हिन्दू संस्कारों से दूर जाने का बड़ा खतरा है। दूसरी पीढ़ी तक मातृभाषा को भूल जाना। अपने संस्कृति के विपरीत व भोगवाद के वातावरण में अपने को टिका कर रख पाना सबसे बड़ी चुनौती है। मारीशस व फिजी में जो हिन्दू रह रहा है, वह अपनी मातृ भाषा को सहेजे हैं। तीसरे प्रकार का हिन्दू है, जो भारत के आसपास के देशों में रहता है। भारत से अलग हुए देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका व नेपाल में इनकी चुनौतियां बहुत भयानक हैं। पाकिस्तान व बांग्लादेश में हिन्दुओं के अस्तित्व पर संकट है। वहीं नेपाल में हिन्दू बहुल है मगर वहां चीन से प्रभावित कम्युनिस्ट सत्ता में हैं। उनकी चुनौतियां अलग हैं। नेपाल में मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। ईसाई मततांरण बढ़ रहा है। हमारे पूर्वजों ने मुख्य रूप से तमिल, आन्ध्र व तेलंगाना से जाकर पूर्व एशिया के देशों में हिन्दू धर्म संस्कृति का प्रचार किया। वियतनाम, लाओस, कम्बोडिया, मलेशिया थाईलैंड जैसे अनेक देशों में जो हिन्दू है वह वहीं का है। वह भारतवंशी नहीं है। मगर वह हिन्दू धर्म का पालन करने वाला है। उसकी चुनौती जैसे इंडोनेशिया और मलेशिया मुस्लिम देश बन गया। उनकी चुनौतियां बड़ी है। वियतनाम में बहुत कम मात्रा हिन्दुओं की रही गयी है। उनके यहां इस्लामिक राज्य आ गया। दुनिया में अनेक बौद्ध देश हैं। वहां पर भी मतांतरण का संकट है।
विहिप ने नशा मुक्ति अभियान चलाने की घोषणा की है, उसके बारे में क्या कहेंगे?समाज को जाग्रत होकर युवाओं को नशामुक्ति के लिए प्रेरित करना होगा। विहिप के युवा विभाग बजरंग दल ने संकल्प लिया है कि हम कम से कम 5000 से ज्यादा स्थानों पर ‘रन फार हेल्थ’ के माध्यम से युवाओं का जागरण व प्रबोधन का काम करेंगे। दुर्गा वाहिनी के माध्यम से 4000 से ज्यादा लड़कियों व महिलाओं के लिए अलग से करेंगे। पूज्य संतों से हमारा संपर्क है। हम निवेदन करने वाले हैं कि नशामुक्ति के लिए अपने प्रभाव क्षेत्र में वह काम करें। सामाजिक समरसता, नशा मुक्ति व लव जिहाद के विषय को लेकर संत गांव-गांव प्रवास कर समाज का प्रबोधन कर रहे हैं।
सरकारी नियंत्रण से मंदिरों की मुक्ति के लिए विहिप क्या प्रयत्न कर रही है?हिन्दू समाज के साथ बहुत बड़ा भेदभाव हो रहा है। देश में 5 लाख मंदिर हैं। 80 प्रतिशत आबादी हिन्दू है। मुसलमानों के मदरसे व मस्जिद मिला लें तो यह आंकड़ा 7 लाख से ज्यादा है। 5 में से 4 लाख मंदिर सरकारी नियंत्रण में हैं। वहीं कोई भी मस्जिद व चर्च सरकारी नियंत्रण में नहीं है। अंग्रेजों के समय शुरू हुआ यह भेदभाव आज भी जारी है। हिन्दू समाज अपने मंदिर संभालने के लिए सक्षम है। हिन्दुओं के मंदिर हिन्दू समाज को सौंप दिये जाएं। इस विषय पर कानून बनाने के लिए हम पूर्ण देश में सभी मुख्यमंत्रियों से मिल रहे हैं। बाद में सभी विधानसभाओं के सदस्यों से इस विषय को लेकर मिलेंगे। पिछले वर्ष 400 से अधिक सांसदों से मिलकर कानून का प्रारूप देकर आये। समाज के प्रतिष्ठित प्रबुद्ध नागरिकों की हम गोष्ठियां भी कर रहे हैं।
जनसंख्या असंतुलन के प्रमुख कारण क्या हैं?मतांतरण, लव जिहाद और बांग्लादेश व म्यामार से हो रही अवैध मुस्लिम घुसपैठ जनसंख्या असंतुलन का प्रमुख कारण है। भारत में 13 लाख महिलाएं 2023 के पहले ढाई साल में गायब हुईं। इसमें तीन लाख से ज्यादा 18 वर्ष से कम लड़कियां हैं। दूसरा हिन्दू समाज का घटता जन्म दर यह बहुत बड़ा कारण है। हम दो हमारे दो से शुरू होकर हम दो हमारे कोई नहीं। यह प्रचलन शुरू हो गया है।
लव जिहाद को रोकन के लिए विहिप क्या कर रही हैै?बजरंग दल लव जिहाद की शिकार कन्याओं को वापस लाने वाला सबसे बड़ा संगठन है। प्रतिवर्ष 10 हजार युवतियों को बजरंग दल वापस ला रहे हैं। दूसरा कसाइयों से गोवंश की रक्षा करने वाला सबसे बड़ा संगठन बजरंग दल है। दो लाख से अधिक गोवंश प्रतिवर्ष बचा रहे हैं। हिन्दू संस्कार, राष्ट्रीय चारित्रय निर्माण की दृष्टि से विहिप अच्छा काम कर रही है। हमारे परिवारों की टूटन बढ़ रही है। भोगवाद का वातावरण बढ़ रहा है। संस्कारों के निर्माण की दृष्टि से महापुरूषों की जीवन कथाएं बच्चों के बीच लेकर जाने का प्रयत्न चल रहा है। चार लाख विद्यार्थियों में रामायण व महाभारत की कथाएं बताने का काम 9 भाषाओं में चल रहा है। मातृभाषा में यह काम होना चाहिए। अगले वर्ष में यह काम दुगना करेंगे।
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(Udaipur Kiran) / बृजनंदन
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