शास्त्रों में भगवान शिव की आराधना के लिए पांच अक्षरों का उल्लेख किया गया है। 'नमः शिवाय' में न, म, शि, व और य ये पांच अक्षर हैं। माना जाता है कि भगवान शिव ब्रह्मांड को नियंत्रित करते हैं। ब्रह्मांड पांच तत्वों से बना है और इन्हीं से चलता भी है। पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि और वायु। शिव के पंचाक्षर मंत्र से ब्रह्मांड के पांच तत्वों को नियंत्रित किया जा सकता है। यह ब्रह्मांड पांच तत्वों से संचालित होता है। इसी तरह यह शिव पंचाक्षर मंत्र भी पांच अक्षरों का है और इससे ब्रह्मांड के हर तत्व को नियंत्रित किया जा सकता है।
हर अक्षर का अपना अर्थ और महत्व होता है। जब इन पांचों अक्षरों का एक साथ जाप किया जाता है तो ब्रह्मांड को नियंत्रित किया जा सकता है। सबसे पहले 'न' अक्षर के बारे में जानते हैं कि इसका क्या महत्व है। न अक्षर के बारे में कहा जाता है- नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरगाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न कराय नमः शिवायः। इसका अर्थ है नागेंद्र। यानी सांपों को धारण करने वाला। न का अर्थ है निरंतर शुद्ध रहना। अर्थात जो नागों को गले में धारण करते हैं तथा प्रतिदिन पवित्र रहते हैं, उन भगवान शिव को मैं नमस्कार करता हूं। इस अक्षर के प्रयोग से व्यक्ति दसों दिशाओं से सुरक्षित रहता है। इसके अतिरिक्त निर्भयता की प्राप्ति होती है।
दूसरा अक्षर है म। इसका अर्थ है- मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चाय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। मंदरापुष्पा बहुपुष्पा सुपूजिताय तस्मे मा कराय नमः शिवाय। अर्थात जो मंदाकिनी अर्थात गंगा को धारण करते हैं। इस अक्षर का दूसरा अर्थ है कि शिव महाकाल हैं। इस अक्षर का अर्थ महाकाल और महादेव भी है। इस अक्षर का प्रयोग नदियों, पर्वतों और फूलों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता था। क्योंकि म अक्षर में ही प्रकृति की शक्ति विद्यमान है।
इसके बाद आता है तीसरा अक्षर श। शिवाय गौरी वडनाब्जवृंद सूर्याय दक्षध्वर्णनाशकाय। श्री नीलकंठाय वृषभाद्धजाय तस्मै “शि” कराय नमः शिवाय। इस श्लोक में शिव की व्याख्या की गई है। इसका अर्थ है शिव के पास शक्ति का होना। यह बहुत ही लाभकारी अक्षर है। यह अक्षर जीवन में अपार सुख-शांति लाता है। साथ ही शिव के साथ शक्ति का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। अब बात करते हैं व अक्षर की। इसके बारे में कहा गया है कि वशिष्ठ कुंभोद्भव गौतमाय मुनींद्र देवर्चित शेखराय। चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै “वा” कराय नमः शिवायः। अर्थात यह अक्षर शिव के मस्तक के त्रिनेत्र से संबंधित है। त्रिनेत्र का अर्थ है शक्ति। साथ ही यह अक्षर शिव के रौद्र रूप को भी बताता है।
शिव इस नेत्र के माध्यम से इस सृष्टि को नियंत्रित करते हैं। इस अक्षर के प्रयोग से ग्रह-नक्षत्रों को नियंत्रित किया जा सकता है। शिव पंचाक्षर मंत्र का अंतिम अक्षर “य” है। इसके बारे में कहा गया है- यक्षस्वरूपाय जटाधाराय पिनाकस्थाय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै “या” कराय नमः शिवायः। इसका अर्थ है कि भगवान शिव अनादि और अनंत हैं। शिव तब भी थे जब सृष्टि नहीं थी, शिव तब भी थे जब सृष्टि है और शिव तब भी रहेंगे जब सृष्टि नहीं होगी। यह पूर्णता का अक्षर है। यह य अक्षर बताता है कि शिव ही संसार का एकमात्र नाम है। जब आप नमः शिवाय में य कहते हैं तो इसका अर्थ है भगवान शिव और आपको शिव का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
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