लाइव हिंदी खबर :- प्राचीन कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव क्रोधित होते हैं, तो वे तांडव करते हैं, जिससे धरती कांपने लगती है, तेज हवाएं चलने लगती हैं और बादल गरजने लगते हैं। यह दृश्य आज भी हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में देखा जा सकता है।
दिल्ली से लगभग 600 किलोमीटर दूर, कुल्लू एक खूबसूरत पहाड़ी शहर है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर साल हजारों पर्यटक आते हैं। इस स्थान से भगवान शिव की एक दिलचस्प कहानी भी जुड़ी हुई है।
कुल्लू में छुट्टियां बिताने वाले पर्यटक यहां की सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यह स्थान अपनी हरी-भरी घाटियों के लिए जाना जाता है, जहां 'बिजली महादेव' का एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसका नाम 'बिजली महादेव' एक रोचक किंवदंती से जुड़ा है। कई साल पहले हुई एक घटना के आधार पर इस मंदिर का निर्माण किया गया था।
बिजली महादेव मंदिर का नामकरण गांव के नाम पर पड़ा बिजली मंदिर
कुल्लू में स्थित इस मंदिर का नाम बिजली महादेव ही नहीं है, बल्कि इसके पास स्थित गांव का नाम भी बिजली महादेव है। इस नाम के पीछे की कहानी क्या है? इस पहाड़ पर स्थित गांव का नाम भी बिजली महादेव है।
इस मंदिर का एक और रहस्य है कि यहां स्थापित शिवलिंग पर बिजली गिरती है। इसके पीछे एक पुरानी कहानी प्रचलित है। घाटी के लोग मानते हैं कि कई हजार साल पहले कुल्लू की घाटी में कुलान्त नामक एक दैत्य निवास करता था।
कुलान्त दैत्य की कहानी ये किंवदंती प्रचलित है
कहा जाता है कि यह दैत्य अजगर के समान विशाल था। कुल्लू के पास बहने वाली व्यास नदी पर उसकी नजर थी। कुलान्त का इरादा इस नदी के प्रवाह को रोककर घाटी को जलमग्न करना था, ताकि वह वहां रहने वाले जीवों को नष्ट कर सके।
लेकिन उसकी योजना सफल नहीं हुई। भगवान शिव को इस दैत्य की साजिश का पता चला और उन्होंने उसे सबक सिखाने का निर्णय लिया। भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए और उसे अपने विश्वास में ले लिया। उन्होंने कहा, 'तुम्हारी पूंछ में आग लग गई है।'
जैसे ही दैत्य ने पीछे मुड़कर देखा, भगवान शिव ने उसके सिर पर त्रिशूल से प्रहार किया। इस वार से कुलान्त दैत्य की मृत्यु हो गई। माना जाता है कि उसकी मृत्यु के बाद उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया।
कुलान्त का शरीर इतना बड़ा हो गया कि यह वर्तमान कुल्लू के एक बड़े हिस्से को घेरता है। मान्यता है कि कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलान्त के शरीर से बनी है।
संक्षेप में, यह भी कहा जाता है कि कुल्लू घाटी का नाम इसी कुलान्त दैत्य के नाम पर पड़ा है। मान्यता है कि दैत्य को मारने के बाद भगवान शिव ने इंद्र देवता को आदेश दिया कि हर बारहवें साल इस पर्वत पर बिजली गिराई जाए।
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