देवदासी उन महिलाओं को कहते हैं, जिन्हें धर्म के नाम पर दान कर दिया जाता है। फिर ये महिलाएं मंदिरों में रहने वाले पुजारियों और रखरखाव करने वालों के हवस का शिकार बनती हैं।
दान कर रहे बेटियां
क्या आप मालूम है कि ये घिनौनी प्रथा आज भी जारी है। दक्षिण के कई राज्य ऐसे हैं, जिसमें आज भी चोरी छिपे मां बाप अपनी बेटियों को देवदासी बनने के लिए दान कर रहे। इसमें ज्यादातर वो लड़कियां होती हैं, जिनके माता पिता की अधिक बेटियां होती हैं। ऐसे में वो अपनी बेटी को देवदासी बना देते हैं ताकि उनको वो कमा कर दे सके। अब जब देवदासी प्रथा समाप्त होने के कगार पर हैं तो ये लड़कियां सेक्स वर्कर बनकर अपना पेट पाल रही हैं।
मंदिर में छोड़ने का रस्म
तेलंगाना क्षेत्र में दलित महिलाओं को देवी देवताओं के नाम पर मंदिरों में छोड़े जाने की रस्म अभी भी चल रही है। देवदासी बनने के बाद महिलाओं को इस बात का भी अधिकार नहीं रहता कि वो किसी को अपने साथ शारीरिक संबंध बनाने से रोक सके। इन महिलाओं के साथ कोई भी अपनी यौन इच्छा को पूरा कर सकता है क्योंकि ये भगवान के नाम पर छोड़ी हुई होती हैं।
परिवार वाले करते हैं भंडारा
इस प्रथा में कुंवारी लड़कियों को सबसे पहले दुल्हन की तरह तैयार किया जाता है। फिर उसे मंदिर ले जाकर उसका विवाह भगवान से कराते हैं। भगवान की पत्नी बनने के बाद मंदिर का पुजारी उनके साथ संबंध बनाता है। अगले सुबह लड़की के परिवार वाले गांव वाले को भंडारा का प्रसाद खिलाते हैं, क्योंकि उनकी बेटी अब भगवान की पत्नी रहती हैं। लड़कियों के परिवार वालों को हर महीने पैसे भी दिए जाते हैं।
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