गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक पिता की आंसुओं भरी तलाश जारी है। मोहम्मद आलम अपने इकलौते बेटे गुलजार की लाश को राप्ती नदी किनारे बनी अज्ञात कब्रों के जंगल में खोज रहे हैं। पहले बेटा गायब हुआ, फिर लाश मिली, लेकिन अब वही लाश कब्र के रूप में गुम हो चुकी है।
लापता बेटे की दर्दनाक कहानी7 मई 2025 को कैंट थाना क्षेत्र के ट्रैफिक तिराहे पर एक युवक की लाश सड़क किनारे पड़ी मिली। नशे की हालत में युवक की पहचान नहीं हो सकी। सिधारीपुर मोहल्ले का रहने वाला गुलजार कई दिनों से घर नहीं लौटा था। दोस्तों ने बताया कि वह नशे में सड़क पर गिर पड़ा और उसकी मौत हो गई।
अज्ञात जान पुलिस ने किया दफनपुलिस ने 72 घंटे इंतजार किया, लेकिन कोई परिचित न आने पर पोस्टमार्टम कराया। इसके बाद शव को राजघाट क्षेत्र में राप्ती नदी किनारे दर्जनों अज्ञात कब्रों के बीच दफना दिया गया। कर्मचारियों ने बेनाम कब्र बनाई, कोई निशान नहीं छोड़ा।
पिता को मिली देर से सूचनाकई दिनों बाद गुलजार के दोस्त ने मोहम्मद आलम को बताया कि लाश उनके बेटे की ही थी। पिता ने पुलिस से संपर्क किया। शव की फोटो, कपड़े और अन्य सबूतों से पहचान हुई। आलम ने कानूनी अनुमति मांगी ताकि इस्लामी रीति से अंतिम संस्कार कर सकें।
कब्रों की भूलभुलैया में फंसा पिताराजघाट पहुंची पुलिस टीम और पिता के सामने सैकड़ों कब्रें बिखरी पड़ी थीं। दफनाने वाले कर्मचारियों को सटीक कब्र का पता नहीं। आलम रोते हुए बोले, मेरा बेटा कहीं दबा है, लेकिन कौन-सी कब्र में? बिना अलविदा कहे कैसे जीऊं? उनकी आंखों में आंसू, आवाज में सिसकियां।
पुलिस का आश्वासन और कानूनी अड़चनएसपी सिटी अभिनव त्यागी ने कहा, कानून के तहत शव पिता को सौंपने का प्रयास करेंगे। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार सटीक पहचान के लिए डीएनए जांच जरूरी। इतनी कब्रों में हर एक से सैंपल लेना पड़ेगा, जिसमें काफी समय लग सकता है।
लापता बेटे की दर्दनाक कहानी7 मई 2025 को कैंट थाना क्षेत्र के ट्रैफिक तिराहे पर एक युवक की लाश सड़क किनारे पड़ी मिली। नशे की हालत में युवक की पहचान नहीं हो सकी। सिधारीपुर मोहल्ले का रहने वाला गुलजार कई दिनों से घर नहीं लौटा था। दोस्तों ने बताया कि वह नशे में सड़क पर गिर पड़ा और उसकी मौत हो गई।
अज्ञात जान पुलिस ने किया दफनपुलिस ने 72 घंटे इंतजार किया, लेकिन कोई परिचित न आने पर पोस्टमार्टम कराया। इसके बाद शव को राजघाट क्षेत्र में राप्ती नदी किनारे दर्जनों अज्ञात कब्रों के बीच दफना दिया गया। कर्मचारियों ने बेनाम कब्र बनाई, कोई निशान नहीं छोड़ा।
पिता को मिली देर से सूचनाकई दिनों बाद गुलजार के दोस्त ने मोहम्मद आलम को बताया कि लाश उनके बेटे की ही थी। पिता ने पुलिस से संपर्क किया। शव की फोटो, कपड़े और अन्य सबूतों से पहचान हुई। आलम ने कानूनी अनुमति मांगी ताकि इस्लामी रीति से अंतिम संस्कार कर सकें।
कब्रों की भूलभुलैया में फंसा पिताराजघाट पहुंची पुलिस टीम और पिता के सामने सैकड़ों कब्रें बिखरी पड़ी थीं। दफनाने वाले कर्मचारियों को सटीक कब्र का पता नहीं। आलम रोते हुए बोले, मेरा बेटा कहीं दबा है, लेकिन कौन-सी कब्र में? बिना अलविदा कहे कैसे जीऊं? उनकी आंखों में आंसू, आवाज में सिसकियां।
पुलिस का आश्वासन और कानूनी अड़चनएसपी सिटी अभिनव त्यागी ने कहा, कानून के तहत शव पिता को सौंपने का प्रयास करेंगे। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार सटीक पहचान के लिए डीएनए जांच जरूरी। इतनी कब्रों में हर एक से सैंपल लेना पड़ेगा, जिसमें काफी समय लग सकता है।
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