नई दिल्ली: रेयर अर्थ मिनरल्स पर एक तरफ चीन के तेवर ढीले पड़ने लगे हैं, दूसरी तरफ भारत ने भविष्य में इसकी सप्लाई चेन बनाए रखने की दिशा में बहुत बड़ा कदम उठाना शुरू कर दिया है। रिपोर्ट है कि भारत ने रेयर अर्थ मैग्नेट मैन्यूफैक्चरिंग के लिए अपने इंसेंटिव प्रोग्राम को तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ाने की योजना तैयार कर ली है। इसके अलावा भारत ने इस संकट से निपटने के लिए और भी विकल्प ढूंढ लिए हैं।
रेयर अर्थ मैग्नेट संकट का नया समाधान
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार रेयर अर्थ मैग्नेट की मैन्यूफैक्चरिंग पर भारत ने अपने इंसेंटिव प्रोग्राम को 788 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा करने की योजना तैयार कर ली है। रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रस्ताव को सिर्फ कैबिनेट की मंजूरी मिलने का इंतजार है। अभी इस योजना के तहत मात्र 290 मिलियन डॉलर की रकम रखी गई है। इस बात की जानकारी देने वाले ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया कि सरकार जो अंतिम रकम तय करेगी, उसमें कुछ बदलाव भी हो सकता है।
चीन की वजह से पूरी दुनिया में किल्लत
भारत ने चीन की ओर से रेयर अर्थ मैग्नेट की सप्लाई चेन में अड़ंगा लगाए जाने के बाद कुछ महीने पहले से ही इसके विकल्प तलाशने शुरू कर दिए थे। इसके तहत देश में भी रेयर अर्थ मिनरल्स की प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना और सप्लाई चेन विकसित करने पर काम चल रहा है। इसके लिए भारत कई और देशों के साथ तालमेल भी कर रहा है। क्योंकि, इस साल अप्रैल में जब से चीन ने चीन ने इसकी सप्लाई पर नियंत्रण लगा दिया, पूरी दुनिया में इसकी किल्लत शुरू हो गई। चीन अबतक दुनिया में 90% रेयर अर्थ मिनरल्स की प्रोसेसिंग करता रहा है।
कई उद्योगों के लिए आवश्यक आवश्यकता
रेयर अर्थ मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग की दिशा में भारत ने तब पहली बार गंभीरता से विचार किया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेतावनी देते हुए कहा था कि इन महत्वपूर्ण खनिजों का इस्तेमाल हथियारों की तरह करना गलत है; और उन्होंने इसके स्थिर और ठोस वैश्विक सप्लाई चेन विकसित करने की वकालत की थी। बता दें कि इलेक्ट्रिक वाहनों,रिन्यूअल एनर्जी और रक्षा क्षेत्र से जुड़े उद्योगों के लिए आज रेयर अर्थ मिनरल्स बहुत ही आवश्यक आवश्यकता है।
भारत समेत कई देश तलाश रहे समाधान
इसके बाद से भारत भी उन दक्षिण एशियाई देशों में शामिल हो गया, जो रेयर अर्थ मैग्नेट और रेयर अर्थ मिनरल्स के लिए चीन पर निर्भरता कम करने के अभियान में जुटे हैं। लेकिन, भारत में बिना सरकारी सहयोग के कंपनियों के लिए इस दिशा में काम करना आसान नहीं था। इसलिए केंद्र सरकार ने ऐसी कंपनियों को आर्थिक मदद देने का फैसला किया। कई सरकारी कंपनियों ने इसके लिए विदेशी कंपनियों से साझेदारी की दिशा में भी पहल शुरू कर दी।
रेडियो एक्टिव एलिमेंट सक्रिय होने का जोखिम
दरअसल, चुनौती ये है कि रेयर अर्थ मिनरल्स के खनन की टेक्नोलॉजी पर भी अभी तक चीन का दबदबा रहा है। इसके खनन के लिए जिस तरह के उपकरण चाहिए, वे चीन के मुकाबले अन्य देशों में काफी महंगे हैं। चीन की पाबंदियों के दायरे में ये सारी चीजें भी शामिल रही हैं। इसके अलावा रेयर अर्थ मिनरल्स की खुदाई में पर्यावरण से जुड़ा बहुत बड़ा जोखिम भी शामिल है, क्योंकि कई बार इसकी वजह से रेडियो एक्टिव एलिमेंट के भी सक्रिय होने का खतरा बना रहता है। इन सभी चीजों को पुख्ता रखना बहुत ज्यादा खर्चीला है। इन्हीं सारी चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र ने इंसेंटिव के दायरे में व्यापक विस्तार की दिशा में पहल शुरू की है।
चीन के रुख में भी आने लगी है नरमी
रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार नई योजना के तहत रेयर अर्थ मैग्नेट पर काम करने वाली करीब पांच कंपनियों की मदद करेगी। वैसे इस दौरान चीन के रुख में भी थोड़ा बदलाव आया है और उसने भारत में इस्तेमाल के लिए आयात का पहला लाइसेंस जारी किया है। हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक किसी भी भारतीय मूल की कंपनी को यह लाइसेंस मिली नहीं है।
भारत को अन्य देशों से भी मिल रहा भरोसा
इतना ही नहीं, भारत इस टेक्नोलॉजी पर भी काम कर रहा है कि भविष्य में रेयर अर्थ मिनरल्स पर निर्भरता ही कम हो जाए। इसके लिए विशेष तरह के मोटर विकसित करने की स्टडी के लिए भी फंड दिए जा रहे हैं। वैसे कई देशों ने भारत को रेयर अर्थ मटेरियल उपलब्ध करवाने में दिलचस्पी दिखाई है। इसकी वजह से उम्मीद है कि रेयर अर्थ मैग्नेट के लिए जो सालाना करीब 2,000 टन ऑक्साइड की जरूरत का अनुमान है, वह वैश्विक सहयोगियों से ही पूरा हो सकता है।
रेयर अर्थ मैग्नेट संकट का नया समाधान
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार रेयर अर्थ मैग्नेट की मैन्यूफैक्चरिंग पर भारत ने अपने इंसेंटिव प्रोग्राम को 788 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा करने की योजना तैयार कर ली है। रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रस्ताव को सिर्फ कैबिनेट की मंजूरी मिलने का इंतजार है। अभी इस योजना के तहत मात्र 290 मिलियन डॉलर की रकम रखी गई है। इस बात की जानकारी देने वाले ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया कि सरकार जो अंतिम रकम तय करेगी, उसमें कुछ बदलाव भी हो सकता है।
चीन की वजह से पूरी दुनिया में किल्लत
भारत ने चीन की ओर से रेयर अर्थ मैग्नेट की सप्लाई चेन में अड़ंगा लगाए जाने के बाद कुछ महीने पहले से ही इसके विकल्प तलाशने शुरू कर दिए थे। इसके तहत देश में भी रेयर अर्थ मिनरल्स की प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना और सप्लाई चेन विकसित करने पर काम चल रहा है। इसके लिए भारत कई और देशों के साथ तालमेल भी कर रहा है। क्योंकि, इस साल अप्रैल में जब से चीन ने चीन ने इसकी सप्लाई पर नियंत्रण लगा दिया, पूरी दुनिया में इसकी किल्लत शुरू हो गई। चीन अबतक दुनिया में 90% रेयर अर्थ मिनरल्स की प्रोसेसिंग करता रहा है।
कई उद्योगों के लिए आवश्यक आवश्यकता
रेयर अर्थ मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग की दिशा में भारत ने तब पहली बार गंभीरता से विचार किया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेतावनी देते हुए कहा था कि इन महत्वपूर्ण खनिजों का इस्तेमाल हथियारों की तरह करना गलत है; और उन्होंने इसके स्थिर और ठोस वैश्विक सप्लाई चेन विकसित करने की वकालत की थी। बता दें कि इलेक्ट्रिक वाहनों,रिन्यूअल एनर्जी और रक्षा क्षेत्र से जुड़े उद्योगों के लिए आज रेयर अर्थ मिनरल्स बहुत ही आवश्यक आवश्यकता है।
भारत समेत कई देश तलाश रहे समाधान
इसके बाद से भारत भी उन दक्षिण एशियाई देशों में शामिल हो गया, जो रेयर अर्थ मैग्नेट और रेयर अर्थ मिनरल्स के लिए चीन पर निर्भरता कम करने के अभियान में जुटे हैं। लेकिन, भारत में बिना सरकारी सहयोग के कंपनियों के लिए इस दिशा में काम करना आसान नहीं था। इसलिए केंद्र सरकार ने ऐसी कंपनियों को आर्थिक मदद देने का फैसला किया। कई सरकारी कंपनियों ने इसके लिए विदेशी कंपनियों से साझेदारी की दिशा में भी पहल शुरू कर दी।
रेडियो एक्टिव एलिमेंट सक्रिय होने का जोखिम
दरअसल, चुनौती ये है कि रेयर अर्थ मिनरल्स के खनन की टेक्नोलॉजी पर भी अभी तक चीन का दबदबा रहा है। इसके खनन के लिए जिस तरह के उपकरण चाहिए, वे चीन के मुकाबले अन्य देशों में काफी महंगे हैं। चीन की पाबंदियों के दायरे में ये सारी चीजें भी शामिल रही हैं। इसके अलावा रेयर अर्थ मिनरल्स की खुदाई में पर्यावरण से जुड़ा बहुत बड़ा जोखिम भी शामिल है, क्योंकि कई बार इसकी वजह से रेडियो एक्टिव एलिमेंट के भी सक्रिय होने का खतरा बना रहता है। इन सभी चीजों को पुख्ता रखना बहुत ज्यादा खर्चीला है। इन्हीं सारी चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र ने इंसेंटिव के दायरे में व्यापक विस्तार की दिशा में पहल शुरू की है।
चीन के रुख में भी आने लगी है नरमी
रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार नई योजना के तहत रेयर अर्थ मैग्नेट पर काम करने वाली करीब पांच कंपनियों की मदद करेगी। वैसे इस दौरान चीन के रुख में भी थोड़ा बदलाव आया है और उसने भारत में इस्तेमाल के लिए आयात का पहला लाइसेंस जारी किया है। हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक किसी भी भारतीय मूल की कंपनी को यह लाइसेंस मिली नहीं है।
भारत को अन्य देशों से भी मिल रहा भरोसा
इतना ही नहीं, भारत इस टेक्नोलॉजी पर भी काम कर रहा है कि भविष्य में रेयर अर्थ मिनरल्स पर निर्भरता ही कम हो जाए। इसके लिए विशेष तरह के मोटर विकसित करने की स्टडी के लिए भी फंड दिए जा रहे हैं। वैसे कई देशों ने भारत को रेयर अर्थ मटेरियल उपलब्ध करवाने में दिलचस्पी दिखाई है। इसकी वजह से उम्मीद है कि रेयर अर्थ मैग्नेट के लिए जो सालाना करीब 2,000 टन ऑक्साइड की जरूरत का अनुमान है, वह वैश्विक सहयोगियों से ही पूरा हो सकता है।
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