नई दिल्ली: चीन के निर्यात में अमेरिका के टैरिफ के कारण भारी गिरावट आई है। अक्टूबर में चीन के निर्यात में 1.1% की कमी देखी गई। यह फरवरी के बाद सबसे बड़ी गिरावट है। इस स्थिति को विश्लेषक भारत के लिए एक अवसर के तौर पर देख रहे हैं ताकि इस गैप को भरा जा सके। यह गिरावट अमेरिका की ओर से लगाए गए 45% टैरिफ का सीधा असर है। इसने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ व्यापार युद्ध छेड़ दिया है।
यह गिरावट इस बात की याद दिलाती है कि चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिकी उपभोक्ताओं पर कितनी निर्भर है। रॉयटर्स के अनुसार, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से होने वाले निर्यात में पिछले महीने अप्रत्याशित रूप से गिरावट आई। अक्टूबर में चीन से होने वाले निर्यात में 1.1% की कमी आई। यह फरवरी के बाद का सबसे खराब प्रदर्शन था, जो सितंबर में 8.3% की बढ़ोतरी से उलट गया। वहीं, 3% के ग्रोथ अनुमान से काफी कम रहा।
अमेरिका को होने वाले सालाना निर्यात में भारी गिरावट
चीन से अमेरिका को होने वाले निर्यात में साल-दर-साल 25.17% की गिरावट आई। हालांकि, यूरोपीय संघ और दक्षिण पूर्व एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को होने वाले निर्यात में मामूली बढ़ोतरी हुई। यह सिर्फ 0.9% और 8.9% रही। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अमेरिकी बाजार के नुकसान ने एक्सपोर्ट ग्रोथ को लगभग 2% या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 0.3% तक कम कर दिया है। इस भारी गिरावट के बावजूद अमेरिका को चीन के 400 अरब डॉलर से अधिक के वार्षिक निर्यात से मेल खाने वाला कोई अन्य देश करीब भी नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत इस संकट का फायदा उठा सकता है और चीन की जगह ले सकता है, कम से कम आंशिक रूप से? हालांकि, भारत खुद भी 50% अमेरिकी टैरिफ के भारी बोझ तले दबा है। फिर भी वह कुछ ऐसे उत्पादों को बेचकर लाभ उठा सकता है जो पहले चीन से सप्लाई होते थे। दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि नई दिल्ली अपनी निर्यात नीति को कैसे एडजस्ट करती है ताकि बीजिंग के छोड़े गए गैप को भरा जा सके।
क्या कह रहे हैं जानकार?
विश्लेषकों का मानना है कि चीन पहले ही अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका है। वह अमेरिका को और अधिक सामान नहीं बेच सकता क्योंकि उसने पहले ही पर्याप्त मात्रा में सामान भेज दिया है। नैटिक्सिस की एशिया-प्रशांत क्षेत्र की मुख्य अर्थशास्त्री एलिसिया गार्सिया-हेर्रेरो ने रॉयटर्स से कहा, 'मुझे लगता है कि पीएमआई हमें पहले से ही चेतावनी दे रहा था कि चीनी निर्यात हमेशा के लिए नहीं बढ़ सकता है और यह केवल अमेरिका के कारण नहीं है, बल्कि इसलिए भी है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है।'
उन्होंने आगे कहा, 'वियतनाम के माध्यम से अमेरिका को होने वाला निर्यात फ्रंट-लोडिंग (सामान को पहले ही भेज देना) खत्म होने के बाद धीमा हो जाएगा और हम वहीं हैं। इसलिए मुझे लगता है कि चीन के लिए चौथी तिमाही में यह बहुत कठिन होने वाला है। इसका मतलब है कि 2026 की पहली छमाही में भी यह कठिन होगा।'
भारत के लिए कैसे मौका?
यह स्थिति भारत के लिए एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करती है। भारत अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता और निर्यात नीतियों में सुधार करके चीन के निर्यात में आई इस कमी को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अमेरिकी टैरिफ के कारण चीन को हो रहे नुकसान का सीधा फायदा उन देशों को मिल सकता है जो चीन के विकल्प के रूप में उभर सकते हैं। भारत को अपनी निर्यात रणनीति को इस तरह से तैयार करना होगा कि वह अमेरिकी बाजार की जरूरतों को पूरा कर सके और चीन के उत्पादों का एक व्यवहार्य विकल्प बन सके।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि निर्यात में गिरावट का मतलब केवल एक देश की अर्थव्यवस्था पर असर नहीं होता, बल्कि यह वैश्विक व्यापार और सप्लाई चेन को भी प्रभावित करता है। जब एक बड़ी अर्थव्यवस्था जैसे चीन को निर्यात में झटका लगता है तो इसका असर दुनिया भर की अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ता है। ऐसे में भारत जैसे देशों के लिए यह एक मौका है कि वे अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करें और वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति को बेहतर बनाएं।
भारत को न केवल अपने उत्पादों की गुणवत्ता और कीमत पर ध्यान देना होगा, बल्कि लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन को भी सुचारु बनाना होगा। अमेरिकी बाजार की मांग को समझना और उसके अनुसार उत्पादन करना भी महत्वपूर्ण होगा। यदि भारत इन चुनौतियों का सामना करने में सफल होता है तो वह निश्चित रूप से चीन के निर्यात में आई इस कमी को पूरा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह भारत के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और वैश्विक व्यापार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित होने का एक सुनहरा अवसर हो सकता है।
यह गिरावट इस बात की याद दिलाती है कि चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिकी उपभोक्ताओं पर कितनी निर्भर है। रॉयटर्स के अनुसार, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से होने वाले निर्यात में पिछले महीने अप्रत्याशित रूप से गिरावट आई। अक्टूबर में चीन से होने वाले निर्यात में 1.1% की कमी आई। यह फरवरी के बाद का सबसे खराब प्रदर्शन था, जो सितंबर में 8.3% की बढ़ोतरी से उलट गया। वहीं, 3% के ग्रोथ अनुमान से काफी कम रहा।
अमेरिका को होने वाले सालाना निर्यात में भारी गिरावट
चीन से अमेरिका को होने वाले निर्यात में साल-दर-साल 25.17% की गिरावट आई। हालांकि, यूरोपीय संघ और दक्षिण पूर्व एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को होने वाले निर्यात में मामूली बढ़ोतरी हुई। यह सिर्फ 0.9% और 8.9% रही। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अमेरिकी बाजार के नुकसान ने एक्सपोर्ट ग्रोथ को लगभग 2% या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 0.3% तक कम कर दिया है। इस भारी गिरावट के बावजूद अमेरिका को चीन के 400 अरब डॉलर से अधिक के वार्षिक निर्यात से मेल खाने वाला कोई अन्य देश करीब भी नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत इस संकट का फायदा उठा सकता है और चीन की जगह ले सकता है, कम से कम आंशिक रूप से? हालांकि, भारत खुद भी 50% अमेरिकी टैरिफ के भारी बोझ तले दबा है। फिर भी वह कुछ ऐसे उत्पादों को बेचकर लाभ उठा सकता है जो पहले चीन से सप्लाई होते थे। दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि नई दिल्ली अपनी निर्यात नीति को कैसे एडजस्ट करती है ताकि बीजिंग के छोड़े गए गैप को भरा जा सके।
क्या कह रहे हैं जानकार?
विश्लेषकों का मानना है कि चीन पहले ही अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका है। वह अमेरिका को और अधिक सामान नहीं बेच सकता क्योंकि उसने पहले ही पर्याप्त मात्रा में सामान भेज दिया है। नैटिक्सिस की एशिया-प्रशांत क्षेत्र की मुख्य अर्थशास्त्री एलिसिया गार्सिया-हेर्रेरो ने रॉयटर्स से कहा, 'मुझे लगता है कि पीएमआई हमें पहले से ही चेतावनी दे रहा था कि चीनी निर्यात हमेशा के लिए नहीं बढ़ सकता है और यह केवल अमेरिका के कारण नहीं है, बल्कि इसलिए भी है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है।'
उन्होंने आगे कहा, 'वियतनाम के माध्यम से अमेरिका को होने वाला निर्यात फ्रंट-लोडिंग (सामान को पहले ही भेज देना) खत्म होने के बाद धीमा हो जाएगा और हम वहीं हैं। इसलिए मुझे लगता है कि चीन के लिए चौथी तिमाही में यह बहुत कठिन होने वाला है। इसका मतलब है कि 2026 की पहली छमाही में भी यह कठिन होगा।'
भारत के लिए कैसे मौका?
यह स्थिति भारत के लिए एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करती है। भारत अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता और निर्यात नीतियों में सुधार करके चीन के निर्यात में आई इस कमी को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अमेरिकी टैरिफ के कारण चीन को हो रहे नुकसान का सीधा फायदा उन देशों को मिल सकता है जो चीन के विकल्प के रूप में उभर सकते हैं। भारत को अपनी निर्यात रणनीति को इस तरह से तैयार करना होगा कि वह अमेरिकी बाजार की जरूरतों को पूरा कर सके और चीन के उत्पादों का एक व्यवहार्य विकल्प बन सके।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि निर्यात में गिरावट का मतलब केवल एक देश की अर्थव्यवस्था पर असर नहीं होता, बल्कि यह वैश्विक व्यापार और सप्लाई चेन को भी प्रभावित करता है। जब एक बड़ी अर्थव्यवस्था जैसे चीन को निर्यात में झटका लगता है तो इसका असर दुनिया भर की अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ता है। ऐसे में भारत जैसे देशों के लिए यह एक मौका है कि वे अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करें और वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति को बेहतर बनाएं।
भारत को न केवल अपने उत्पादों की गुणवत्ता और कीमत पर ध्यान देना होगा, बल्कि लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन को भी सुचारु बनाना होगा। अमेरिकी बाजार की मांग को समझना और उसके अनुसार उत्पादन करना भी महत्वपूर्ण होगा। यदि भारत इन चुनौतियों का सामना करने में सफल होता है तो वह निश्चित रूप से चीन के निर्यात में आई इस कमी को पूरा करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह भारत के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और वैश्विक व्यापार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित होने का एक सुनहरा अवसर हो सकता है।
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