नई दिल्ली: ऐसा देखने में आता है कि किसी का बेटा नाबालिग हो तो बाप कोई अचल संपत्ति बेच देता है। लेकिन जब बेटा जवान हो तो उसे अपनी मर्जी के हिसाब से बेचता है। ऐसे में उस संपत्ति के पुराने खरीदार का क्या होगा? इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कानून के मुताबिक 18 साल से कम उम्र की संतान नाबालिग या माइनर (Minor) कहलाता है।
बिक्री को दे सकता है चुनौती
18 साल के होने के बाद कोई भी नाबालिग, अपने माता-पिता या अभिभावक द्वारा की गई प्रॉपर्टी की बिक्री या ट्रांसफर को चुनौती दे सकता है। इसके लिए उसे कोई औपचारिक मुकदमा दायर करने की भी जरूरत नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि बालिग होने पर ऐसे ट्रांसफर को रद्द करने के लिए सीधे कदम उठाए जा सकते हैं, जैसे कि खुद उस प्रॉपर्टी को बेचना या ट्रांसफर करना। हमारे सहयोगी TOI की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
क्या था मामला
यह अहम फैसला के एस शिवप्पा बनाम के. नीलममा मामले में आया है। इस मामले में कर्नाटक के शमनूर गांव के दो प्लॉट्स शामिल थे। इन प्लॉट्स को 1971 में रुद्रप्पा ने अपने तीन नाबालिग बेटों के नाम पर खरीदा था। रुद्रप्पा ने कोर्ट की इजाज़त के बिना ही इन ज़मीनों को बेच दिया था। बाद में, जब बेटे बालिग हुए, तो उन्होंने इन ज़मीनों को के एस शिवप्पा को बेच दिया। ज़मीनों के पुराने खरीदारों ने प्लॉट्स पर मालिकाना हक़ जताया, जिससे विवाद खड़ा हो गया। उसके बाद निचली अदालत होते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि नाबालिगों को मुकदमा दायर करने की ज़रूरत नहीं है। निचली अदालतों में इस बात पर मतभेद था कि क्या नाबालिगों को मूल बिक्री को रद्द करने के लिए मुकदमा दायर करना चाहिए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस उलझन को दूर करते हुए कहा कि हमेशा औपचारिक मुकदमा दायर करना ज़रूरी नहीं है। बालिग होने पर, अभिभावक द्वारा की गई बिक्री को सीधे तौर पर रद्द किया जा सकता है। इसके लिए वे खुद उस प्रॉपर्टी को बेचकर या ट्रांसफर करके अपने इरादे जाहिर कर सकते हैं।
फैसले में क्या आया
जस्टिस मिथल ने अपने फैसले में लिखा है: "यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अभिभावक द्वारा नाबालिग के साथ किया गया एक अमान्य (voidable) सौदा, बालिग होने पर समय रहते नाबालिग द्वारा या तो अमान्य सौदे को रद्द करने के लिए मुकदमा दायर करके या अपने स्पष्ट आचरण से उसे अस्वीकार करके रद्द किया जा सकता है।" इस फैसले के पीछे की वजह बताते हुए कोर्ट ने कहा कि कई बार नाबालिगों को मूल बिक्री के बारे में पता नहीं होता है। या फिर, प्रॉपर्टी अभी भी उनके कब्ज़े में हो सकती है। ऐसे मामलों में, मुकदमा दायर करना हमेशा ज़रूरी नहीं होता। बालिग होने के बाद वे सीधे कदम उठाकर अपने हक़ जता सकते हैं।
बिक्री को दे सकता है चुनौती
18 साल के होने के बाद कोई भी नाबालिग, अपने माता-पिता या अभिभावक द्वारा की गई प्रॉपर्टी की बिक्री या ट्रांसफर को चुनौती दे सकता है। इसके लिए उसे कोई औपचारिक मुकदमा दायर करने की भी जरूरत नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि बालिग होने पर ऐसे ट्रांसफर को रद्द करने के लिए सीधे कदम उठाए जा सकते हैं, जैसे कि खुद उस प्रॉपर्टी को बेचना या ट्रांसफर करना। हमारे सहयोगी TOI की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
क्या था मामला
यह अहम फैसला के एस शिवप्पा बनाम के. नीलममा मामले में आया है। इस मामले में कर्नाटक के शमनूर गांव के दो प्लॉट्स शामिल थे। इन प्लॉट्स को 1971 में रुद्रप्पा ने अपने तीन नाबालिग बेटों के नाम पर खरीदा था। रुद्रप्पा ने कोर्ट की इजाज़त के बिना ही इन ज़मीनों को बेच दिया था। बाद में, जब बेटे बालिग हुए, तो उन्होंने इन ज़मीनों को के एस शिवप्पा को बेच दिया। ज़मीनों के पुराने खरीदारों ने प्लॉट्स पर मालिकाना हक़ जताया, जिससे विवाद खड़ा हो गया। उसके बाद निचली अदालत होते हुए मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि नाबालिगों को मुकदमा दायर करने की ज़रूरत नहीं है। निचली अदालतों में इस बात पर मतभेद था कि क्या नाबालिगों को मूल बिक्री को रद्द करने के लिए मुकदमा दायर करना चाहिए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस उलझन को दूर करते हुए कहा कि हमेशा औपचारिक मुकदमा दायर करना ज़रूरी नहीं है। बालिग होने पर, अभिभावक द्वारा की गई बिक्री को सीधे तौर पर रद्द किया जा सकता है। इसके लिए वे खुद उस प्रॉपर्टी को बेचकर या ट्रांसफर करके अपने इरादे जाहिर कर सकते हैं।
फैसले में क्या आया
जस्टिस मिथल ने अपने फैसले में लिखा है: "यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अभिभावक द्वारा नाबालिग के साथ किया गया एक अमान्य (voidable) सौदा, बालिग होने पर समय रहते नाबालिग द्वारा या तो अमान्य सौदे को रद्द करने के लिए मुकदमा दायर करके या अपने स्पष्ट आचरण से उसे अस्वीकार करके रद्द किया जा सकता है।" इस फैसले के पीछे की वजह बताते हुए कोर्ट ने कहा कि कई बार नाबालिगों को मूल बिक्री के बारे में पता नहीं होता है। या फिर, प्रॉपर्टी अभी भी उनके कब्ज़े में हो सकती है। ऐसे मामलों में, मुकदमा दायर करना हमेशा ज़रूरी नहीं होता। बालिग होने के बाद वे सीधे कदम उठाकर अपने हक़ जता सकते हैं।
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