मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो बेटियों को सिजोफ्रेनिया सहित कईबीमारियों से ग्रस्त वर्षीय पिता की चल-अचल संपत्ति के बारे में निर्णय लेने का कानूनी संरक्षक नियुक्त किया है। कोर्ट ने बेटियों को पिता का लीगल गार्जियन के रूप में स्वीकार करने का सभी अथॉरिटी को निर्देश दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बेटियों को पिता बैक और पीपीएफ खाता ऑपरेट करने की छूट होगी। बेटियों को पिता की चल- अचल संपत्ति के बारे में निर्णय लेने की अनुमति होगी।
जस्टिस रियाज छागला और जस्टिस फरहान दुबास की बेंच ने बेटियों की याचिका पर यह फैसला सुनाया है। याचिका में बेटियों ने पिता की सेहत के संबंध में सायन अस्पताल की रिपोर्ट जोड़ी ती। इसके साथ ही स्प्षट किया था कि सेहत ठीक न होने के चलते वे निर्णय लेने में असमर्थ हैं।
हाई कोर्ट ने बनाया मेडिकल बोर्डसुनवाई के बाद बेंच ने 75 वर्षीय शख्स की सेहत को जांचने के लिए जेजे अस्पताल को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया था। मेडिकल सुपरिटेंडेंट संजय सुरासे ने बोर्ड की जांच के बाद कोर्ट को रिपोर्ट भेजी थी। रिपोर्ट में 75 वर्षीय शख्स के सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त होने की पुष्टि की गई थी।
पत्नी ने नहीं की आपत्तिबेंच को बताया गया कि बेटियों के अलावा शख्स का कोई रिलेटिव नहीं, जिसे कानूनी संरक्षक नियुक्त किया जा सके। बेटियों को कानूनी संरक्षक बनाए जाने पर शख्स की पत्नी को आपत्ति नहीं है। केस के तथ्यों को देखते हुए बेंच ने बेटियों को पिता का कानून संरक्षक नियुक्त किया।
जस्टिस रियाज छागला और जस्टिस फरहान दुबास की बेंच ने बेटियों की याचिका पर यह फैसला सुनाया है। याचिका में बेटियों ने पिता की सेहत के संबंध में सायन अस्पताल की रिपोर्ट जोड़ी ती। इसके साथ ही स्प्षट किया था कि सेहत ठीक न होने के चलते वे निर्णय लेने में असमर्थ हैं।
हाई कोर्ट ने बनाया मेडिकल बोर्डसुनवाई के बाद बेंच ने 75 वर्षीय शख्स की सेहत को जांचने के लिए जेजे अस्पताल को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया था। मेडिकल सुपरिटेंडेंट संजय सुरासे ने बोर्ड की जांच के बाद कोर्ट को रिपोर्ट भेजी थी। रिपोर्ट में 75 वर्षीय शख्स के सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त होने की पुष्टि की गई थी।
पत्नी ने नहीं की आपत्तिबेंच को बताया गया कि बेटियों के अलावा शख्स का कोई रिलेटिव नहीं, जिसे कानूनी संरक्षक नियुक्त किया जा सके। बेटियों को कानूनी संरक्षक बनाए जाने पर शख्स की पत्नी को आपत्ति नहीं है। केस के तथ्यों को देखते हुए बेंच ने बेटियों को पिता का कानून संरक्षक नियुक्त किया।
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