नई दिल्ली: चीन ने अपने अधिकारियों को यात्रा, भोजन और ऑफिस पर होने वाले फिजूल खर्चों को कम करने के लिए कहा है। सरकार और सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने एक नोटिस जारी किया है। इसमें रिसेप्शन, शराब और सिगरेट पर होने वाले खर्चों को भी शामिल किया गया है। यह कदम राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मितव्ययिता मुहिम का हिस्सा है। आर्थिक चुनौतियों के कारण सरकार के बजट पर दबाव बढ़ रहा है। इसलिए यह फैसला लिया गया है। सरकार चाहती है कि अधिकारी फिजूलखर्ची न करें और पैसे बचाएं। चीन का अपने अधिकारियों से गैर-जरूरी खर्चों में कटौती करने का निर्देश सिर्फ एक आंतरिक मामला नहीं है। यह भारत के लिए भी महत्वपूर्ण संदेश है कि आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए वित्तीय अनुशासन, संसाधनों का सही इस्तेमाल और प्राथमिकता-आधारित खर्च कितना महत्वपूर्ण है। भारत को इस स्थिति का विश्लेषण करके अपनी आर्थिक नीतियों और रणनीतियों पर विचार करना चाहिए ताकि वह वैश्विक चुनौतियों का सामना कर सके और अवसरों का लाभ उठा सके।सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, इस निर्देश में 'कड़ी मेहनत और बचत' करने की बात कही गई है। इसमें 'फिजूलखर्ची और बर्बादी' का विरोध किया गया है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, नोटिस में कहा गया है, 'बर्बादी शर्मनाक है और अर्थव्यवस्था गौरवशाली है।' इसका मतलब है कि पैसे बर्बाद करना गलत है और पैसे बचाना अच्छी बात है। बढ़ रहा है कर्ज का बोझयह अभियान ऐसे समय में शुरू किया गया है जब जमीन की बिक्री से होने वाली आय कम हो रही है। इससे चीन में स्थानीय सरकारों के बजट पर असर पड़ रहा है और उन पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है। 2023 के अंत में चीन सरकार ने अधिकारियों को 'बेल्ट-टाइट करने' के लिए कहा था। यह भ्रष्टाचार और दिखावे को रोकने के सरकार के प्रयासों को और मजबूत करता है।पिछले साल बीजिंग ने स्थानीय सरकारों के कर्ज से होने वाले खतरों को दूर करने के लिए सालों में सबसे बड़ा प्रयास शुरू किया। इसका उद्देश्य डिफॉल्ट के जोखिम को कम करना और स्थानीय सरकारों को आर्थिक विकास का समर्थन करने के लिए अधिक जगह देना है।शिन्हुआ के अनुसार, कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो स्थायी समिति के सदस्य चाई की ने हेबेई प्रांत के अधिकारियों से भी खाने-पीने पर होने वाले फिजूल खर्च को कम करने का आग्रह किया।राष्ट्रपति शी ने 2012 में पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद लागत में कटौती करने के लिए एक अभियान शुरू किया। यह सरकार में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए व्यापक प्रयास का हिस्सा था। इस साल मार्च में विधायी बैठकों के दौरान इस अभियान को फिर से शुरू किया गया। अधिकारियों ने लोगों को अधिक वित्तीय सहायता देकर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का वादा किया।सरकार का कहना है कि पैसे बचाना बहुत जरूरी है। अधिकारियों को कम खर्च करने और भ्रष्टाचार से दूर रहने के लिए कहा गया है। सरकार चाहती है कि स्थानीय सरकारें आर्थिक विकास में मदद करें। इसलिए उन्हें कर्ज कम करने और पैसे बचाने के लिए कहा गया है। राष्ट्रपति शी चाहते हैं कि चीन में फिजूलखर्ची कम हो और सभी लोग ईमानदारी से काम करें। भारत को समझना चाहिए मैसेजचीन कभी तेज आर्थिक विकास का सिंबल था। अब वह आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। यह दिखाता है कि कोई भी अर्थव्यवस्था हमेशा तेज रफ्तार से नहीं बढ़ सकती है। आर्थिक प्रबंधन और वित्तीय विवेक हमेशा महत्वपूर्ण होते हैं।चीन का यह कदम दिखाता है कि सरकार अब गैर-जरूरी खर्चों में कटौती करके संसाधनों को अधिक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में लगाने पर फोकस कर रही है। भारत के लिए भी यह एक सीख है कि सार्वजनिक धन का इस्तेमाल सावधानीपूर्वक और प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। फिजूलखर्ची को कम करके विकास और कल्याणकारी योजनाओं के लिए अधिक संसाधन जुटाए जा सकते हैं।चीन का जोर मितव्ययिता पर है, जो अप्रत्यक्ष रूप से आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा दे सकता है। जब देश आंतरिक रूप से संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करता है तो बाहरी निर्भरता कम हो सकती है। भारत के 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के लिए यह एक महत्वपूर्ण संदेश है कि वित्तीय अनुशासन और संसाधनों का कुशल उपयोग आत्मनिर्भरता की नींव है।अगर चीन आर्थिक रूप से संयम बरतता है तो यह भारत के लिए कुछ अवसर पैदा कर सकता है। उदाहरण के लिए अगर चीन का आयात कम होता है तो भारत अपने निर्यात को बढ़ा सकता है। इसके अलावा अगर विदेशी निवेश के लिए चीन अब उतना आकर्षक नहीं रहता है तो भारत एक बेहतर गंतव्य के रूप में उभर सकता है, बशर्ते वह एक अनुकूल कारोबारी माहौल प्रदान करे।
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