श्रद्धा-विश्वास सफलता की जननी है और पति-पत्नी की आपसी रिश्तों को मजबूत करता है, इसलिए व्रत के दौरान कथा का श्रवण आवश्यक माना गया है।
द्रौपदी की कथा- उल्लेख मिलता है कि द्रौपदी ने भी करवा चौथ का उपवास किया था। इस व्रत के देवता चन्द्रमा माने गए हैं। कहा जाता है कि जब अर्जुन नील गिरि पर्वत पर तपस्या के लिए गए, तब द्रौपदी चिंता और व्याकुलता से भर उठीं। उनकी इस स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें करवा चौथ व्रत करने तथा चन्द्रमा की पूजा करने का मार्ग बताया। जब द्रौपदी ने व्रत का आचरण किया तब कौरवों की पराजय होकर पांडवों की विजय हुई, इसी कारण पुत्र, सौभाग्य और धन-धान्य की वृद्धि चाहने वाली स्त्रियों को इस व्रत को अवश्य ही करना चाहिए।
देव पत्नियों की कथा- करवा चौथ व्रत की कथाएं स्त्री के अटूट सतीत्व और अटूट विश्वास की गाथाएं हैं। पौराणिक आख्यान बताते हैं कि देव-दानव संग्राम में जब देवता लगातार पराजित हो रहे थे, तब ब्रह्मा जी की प्रेरणा से देव पत्नियों ने कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को कठोर उपवास-पूजन किया, उनकी सत्य निष्ठा और आस्था से ही देवताओं को विजय प्राप्त हुई।
सावित्री-सत्यवान की कथा- सावित्री अपने पति सत्यवान से अत्यंत प्रेम करती थी। नियति से सत्यवान का अल्पायु होना निश्चित था। एक दिन यमराज उसके प्राण लेने आए। सावित्री ने पतिव्रता धर्म और तपस्या से उन्हें प्रसन्न कर लिया और सत्यवान को पुनः जीवन मिला। यह कथा करवाचौथ में सतीत्व और पति की दीर्घायु की प्रतीक मानी जाती है।
करवा की कथा- करवा नामक स्त्री अपने पति से अपार प्रेम करती थी। एक बार उसका पति नदी में स्नान कर रहा था कि अचानक एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया। करवा ने पतिव्रता बल से मगरमच्छ को एक कच्छे धागे से बाँध दिया और यमराज से पति की रक्षा करने की प्रार्थना की। करवा की निष्ठा से यमराज ने मगरमच्छ को दंड दिया और पति की रक्षा की।
वीरावती की कथा- वीरावती सात भाइयों की लाड़ली बहन थी। पहले करवा चौथ व्रत पर शाम तक भूख-प्यास से वह बेहोश होने लगी। भाइयों ने छल से दीपक दिखाकर चन्द्रमा का आभास कराया और उसने व्रत तोड़ दिया। कहा जाता है कि व्रत खंडित होने से उसका दुष्प्रभाव उसके पति पर पड़ा। सच का पता चलने पर पश्चाताप के बाद वीरावती ने विधि-विधान से पुनः व्रत किया और चन्द्रदेव से वरदान पाकर पति का जीवन सुरक्षित किया। स्त्री के अन्तर्मन में बिखरी हुई ऊर्जा जब व्रत आदि के माध्यम से एक लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक साथ संगठित हो जाती है, तो ब्रह्माण्ड में ऐसा कोई भी कार्य असंभव नहीं है, जो सतीत्व की ऊर्जा से पूरा न हो सके।
द्रौपदी की कथा- उल्लेख मिलता है कि द्रौपदी ने भी करवा चौथ का उपवास किया था। इस व्रत के देवता चन्द्रमा माने गए हैं। कहा जाता है कि जब अर्जुन नील गिरि पर्वत पर तपस्या के लिए गए, तब द्रौपदी चिंता और व्याकुलता से भर उठीं। उनकी इस स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें करवा चौथ व्रत करने तथा चन्द्रमा की पूजा करने का मार्ग बताया। जब द्रौपदी ने व्रत का आचरण किया तब कौरवों की पराजय होकर पांडवों की विजय हुई, इसी कारण पुत्र, सौभाग्य और धन-धान्य की वृद्धि चाहने वाली स्त्रियों को इस व्रत को अवश्य ही करना चाहिए।
देव पत्नियों की कथा- करवा चौथ व्रत की कथाएं स्त्री के अटूट सतीत्व और अटूट विश्वास की गाथाएं हैं। पौराणिक आख्यान बताते हैं कि देव-दानव संग्राम में जब देवता लगातार पराजित हो रहे थे, तब ब्रह्मा जी की प्रेरणा से देव पत्नियों ने कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को कठोर उपवास-पूजन किया, उनकी सत्य निष्ठा और आस्था से ही देवताओं को विजय प्राप्त हुई।
सावित्री-सत्यवान की कथा- सावित्री अपने पति सत्यवान से अत्यंत प्रेम करती थी। नियति से सत्यवान का अल्पायु होना निश्चित था। एक दिन यमराज उसके प्राण लेने आए। सावित्री ने पतिव्रता धर्म और तपस्या से उन्हें प्रसन्न कर लिया और सत्यवान को पुनः जीवन मिला। यह कथा करवाचौथ में सतीत्व और पति की दीर्घायु की प्रतीक मानी जाती है।
करवा की कथा- करवा नामक स्त्री अपने पति से अपार प्रेम करती थी। एक बार उसका पति नदी में स्नान कर रहा था कि अचानक एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया। करवा ने पतिव्रता बल से मगरमच्छ को एक कच्छे धागे से बाँध दिया और यमराज से पति की रक्षा करने की प्रार्थना की। करवा की निष्ठा से यमराज ने मगरमच्छ को दंड दिया और पति की रक्षा की।
वीरावती की कथा- वीरावती सात भाइयों की लाड़ली बहन थी। पहले करवा चौथ व्रत पर शाम तक भूख-प्यास से वह बेहोश होने लगी। भाइयों ने छल से दीपक दिखाकर चन्द्रमा का आभास कराया और उसने व्रत तोड़ दिया। कहा जाता है कि व्रत खंडित होने से उसका दुष्प्रभाव उसके पति पर पड़ा। सच का पता चलने पर पश्चाताप के बाद वीरावती ने विधि-विधान से पुनः व्रत किया और चन्द्रदेव से वरदान पाकर पति का जीवन सुरक्षित किया। स्त्री के अन्तर्मन में बिखरी हुई ऊर्जा जब व्रत आदि के माध्यम से एक लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक साथ संगठित हो जाती है, तो ब्रह्माण्ड में ऐसा कोई भी कार्य असंभव नहीं है, जो सतीत्व की ऊर्जा से पूरा न हो सके।
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