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पीयूष मिश्रा Exclusive: ऐसे परफॉर्म करते हैं कि हर शो में लोग बोले, मजा आ गया, नशे में आज तक कुछ नहीं लिखा

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पर्दे पर अलग-अलग किरदारों में डूब जाना एक बात है और नाट्य मंच पर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर पाना दूसरी। फिल्मों के लिए गाना एक बात है और लाखों श्रोताओं को अपनी गायिकी से बांध लेना दूसरी, लेकिन इन सभी कलाओं को एक साथ साधने वाली शख्सियत हैं पीयूष मिश्रा। अदाकारी, गायिकी, गीत लेखन हर विधा के महारथी पीयूष मिश्रा और उनका बैंड बल्लीमारान जल्द ही टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप के साथ भारत के 15 शहरों में अपना विशेष म्यूजिकल शो आरंभ 2.0 लेकर आ रहे हैं। 7 नवंबर को मुंबई से शुरू हो रहे इस म्यूजिक सफर के साथ-साथ पीयूष मिश्रा ने हमसे अपनी जिंदगी के सफरनामे पर भी की खास बातचीत:

आप 80 के दशक में दिल्ली थिएटर के स्टार थे, उस स्टारडम को छोड़कर मुंबई में फिल्मों में एक नई शुरुआत करने का अनुभव कैसा रहा? शुरुआत में क्या चुनौतियां रहीं?मैं पहली बार मुंबई 1989 में सिर्फ एक साल के लिए आया था। तब नसीरुद्दीन शाह के साथ एक नाटक किया, डिस्कवरी ऑफ इंडिया के तीन एपिसोड और एक डॉक्यूमेंट्री की थी। उस एक साल में मुंबई ने मुझे तोड़कर भेजा था। तोड़कर, कूटकर, पीसकर, इतना बुरा व्यवहार किया था कि मैंने प्रण लिया था कि मैं यहां कभी नहीं आऊंगा पर वो मेरी गलती थी। तब मैं उसके लायक नहीं था। मैं अधूरा था, बाद में जब मैंने खुद पर काम किया, अपने स्किल को मांजा तो मुंबई ने बाहें खोलकर स्वीकार किया। 2003 में जब मैं वापस आया तो लगा कि ये तो बहुत बढ़िया शहर है। मुंबई ने मुझे हाथों हाथ लिया। हर जगह से काम मिला, अभी तो मैं हॉलिवुड की भी एक फिल्म कर आया। वहां से अवॉर्ड भी ले आया तो मुंबई कामगारों की नगरी है, नकारों के लिए नहीं है। नकारों के लिए यहां पर और सौ किस्म के नशे पत्ते हैं और आपने जरा सा ध्यान नहीं दिया तो आप उस ओर खिंच जाएंगे। इसलिए, मैं यूथ को कहता हूं कि यहां तैयारी करके आओ। खुद पर काम करके आओ, तो मुंबई खुले हाथों से स्वीकारेगी।

एक दौर में आप खुद भी नशे-पत्ते की लत में पड़ गए थे, जिसका जिक्र अपनी आत्मकथा में भी खुलकर किया है। उस अनुभव से क्या सीखा?बहुत तकलीफ है यार। यकीन मानो, नशे से कभी क्रिएटिविटी नहीं होती। मैंने पीकर आज तक एक चीज नहीं लिखी। एक म्यूजिक नहीं बनाया। एक परफॉर्मेंस नहीं की है। यह एक क्षणिक सुख है। एक फैंटेसी की दुनिया में जाने का तरीका होता है कि नशे में हम वहां पहुंच सकते हैं जहां असलियत में नहीं पहुंच सकते। पीकर आप आराम से ऑस्कर ले सकते हैं कि पांच सौ ऑस्कर मेरे घर में रखे हैं (हंसते हैं)। नशे से कभी क्रिएटिविटी नहीं होती, उल्टे आप सूख जाते हैं। आपकी परफॉर्मेंस सूख जाती है। आप दिल में उतरने वाली परफॉर्मेंस नहीं कर सकते।

आपकी आवाज काफी अलग तरह की है। आपका म्यूजिक भी फिल्मी नहीं है, क्या शुरुआत में उसे बदलने की भी सलाह मिली ताकि वो फिल्मों में फिट हो सके?बोला तो नहीं गया लेकिन मैं खुद समझ गया कि मामला जमेगा नहीं। जिनको मुझसे काम करवाना होगा, वो करवाएंगे, जैसे अनुराग कश्यप हैं। जिनको नहीं करवाना होगा, वे नहीं करवाएंगे। अब तारीफ तो सब करते हैं कि भई, कमाल लिखते हो। ये है, वो है, काम कोई देता नहीं है। फिर भी मैं इस चीज को बहुत आराम से लेता हूं कि ठीक है, या तो मैं आपके काम के लायक नहीं हूं या आपका काम मेरे लायक नहीं है। मुझे बहुत हसरत नहीं है कि इतना बड़ा स्टार बनूं। जितना बड़ा बन गया, उतना काफी है। मैं शाम को रोज ध्यान और विपश्यना करता हूं और पूरे दिन की दिनचर्या के बारे में सोचता हूं। तबर मुझे कई बातों का समाधान मिल जाता है कि अगर मैंने कुछ गलत किया तो नहीं करना चाहिए था और किसी ने मेरे साथ गलत किया तो उसे माफ कर दो। तब लगता था कि अपनी नेमतें गिनो पीयूष मिश्रा। 1983 में तुम कहां से चले थे और कहां पहुंच गए। जबरदस्ती रोने करने की जरूरत नहीं है कि मुझे ये नहीं मिला। रुपया-पैसा, मान-सम्मान, दोस्त, बीवी, बच्चे, सब तो है। मैं बहुत खुशनसीब हूं। मुझे चिढ़-चिढ़ करने का हक ही नहीं है।

आज आपकी जिंदगी की सबसे बड़ी प्रेरणा क्या है?आज सबसे बड़ी प्रेरणा ध्यान है। वह मैं रोजाना करता हूं और मैं खुद अपनी सबसे बड़ी इंस्पिरेशन हूं। लोग कहते हैं कि मेरी जिंदगी में लड़की आई और सब बदल दिया। गुरु ने बदल दिया ऐसा कुछ नहीं होता। मैंने ये करना चाहा इसलिए यह हुआ। मैंने खुद को बदला। बाकी जो चीजें होती है कि मेरा बचपन ऐसा था, मेरे साथ ऐसा हुआ, वो सब बाहरी चीजें हैं। वे आपको ठोकती हैं बाकी आपकी मर्जी है कि आप रिएक्ट करो या न करो। मैंने रिएक्ट कर दिया और वो क्रिएटिविटी में निकला। हो सकता है कि मैं खामोश हो जाता या उसका शिकार हो जाता लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया, जिसका बहुत अच्छा रिजल्ट आया।

आपका बेखौफ व्यक्तित्व और विद्रोहीपना भी काफी मशहूर है। ये विद्रोही तेवर शुरू से थे या इसके पीछे वक्त के थपेड़ों का हाथ है?यह मिजाज होता है। कुछ बंदे बहुत सहमे हुए होते हैं, कुछ फराखदिली से बोलते हैं, कुछ बंदे अनुराग कश्यप होते है कि कट जाऊंगा पर अपने ढंग की ही फिल्में बनाऊंगा, वो पिटे या चले। ये मेरा मिजाज था कि मैं ऐसे ही बात कर सकता हूं। अब मैं शांत हो गया हूं। मेरी स्वीकारोक्ति बढ़ गई है। यह मेरे जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया है कि अगर सामने वाले का बर्ताव मुझे पसंद नहीं आ रहा है तो मैं ये मान लेता हूं कि यार, तुम मुझे पसंद नहीं आ रहे हो। पहले ऐसा था कि तेरी ऐसी की तैसी। अब ये है कि तुम शायद मेरे लिए नहीं बने हो। मैं तुम्हारे लिए नहीं बना हूं और ये मान लेने से बहुत शांति मिलती है। ये नहीं कि अरे, मैं शाहरुख खान नहीं बन पाया...!, ठीक है यार, शाहरुख खान के पास चार्म है, खूबसूरती है। वो बचपन का स्टार है। पहले से स्टार था। हम वैसे नहीं बन पाए तो नहीं बन पाए। पीयूष मिश्रा तो बने। शायद वो पीयूष मिश्रा बनने की कोशिश करता तो वो नहीं बन पाता। इसलिए आपमें जो खूबियां हैं, उसकी कद्र करनी चाहिए। जिंदगी में आप हर चीज नहीं पा सकते हैं।

आपके बैंड बल्लीमारान का सफर सीमित दर्शक संख्या वाली महफिलों से शुरू होकर अब बड़े-बड़े प्रोसेनियम थिएटर और स्टेडियम तक पहुंच चुका है। इतने बड़े दर्शक वर्ग के लिए परफॉर्म करने के लिए कुछ तब्दीलियां करनी पड़ीं?हमारा मानना है कि आप कहीं भी परफॉर्म करें, सबसे जरूरी है ऑडियंस के साथ कम्यूनिकेट करना, तो क्लोज स्पेस हो या स्टेडियम हम ऑडियंस से जुड़ने की कोशिश करते हैं। चूंकि, मैं थिएटर का बंदा हूं तो मुझे पता है कि डायलॉग को कम्यूनिकेट कैसे किया जाता है और मेरे सारे गाने डायलॉग फॉर्म में हैं। चाहे आरंभ हो या इक बगल में चांद, ये बेसिकली डायलॉग हैं जिनमें पॉज, पंक्चुएशन, गानों में स्टेटमेंट, ये सब बहुत अहम हैं। हमने इन चीजों से ऑडियंस को बांधा, खासकर नौजवानों को, तो हमारे बैंड की खुशबू इंटीमेट ही है। यह बड़ा बैंड होने का भुलावा नहीं देता। सभी तक पहुंचता है। अक्सर लोग कहते हैं कि आज मजा आ गया। हमारी कोशिश होती है कि लोगों को हर शो में मजा आए। इसके लिए, गानों का चुनाव बहुत अहम होता है कि हर गाना ऐसा हो जो रिलेटेबल हो। हर बंदा उसे गा सके। उनसे डरे नहीं, क्योंकि ये फिल्मी गाने तो थे नहीं तो हमें ये डर था कि लोग रिलेट करेंगे या नहीं, पर हर बंदे ने रिलेट किया। हां, ये है कि चूंकि गाने मैं खुद लिखता हूं तो यह ख्याल रखता हूं कि गाने बहुत संभाल के लिखे जाएं। इनसे किसी भी बंदे को चोट न पहुंचे। कोई भी इन गानों से दुखी न हो और अब तक ऐसा नहीं हुआ है। सारे गाने लोगों तक पहुंचते हैं। अभी तो हमारा रिकॉर्ड भी आने वाला है, तो हर बंदा इन गानों को हमारे साथ गाएगा। हुस्ना, इक बगल, आरंभ तो अब भी गाते हैं, मगर रिकॉर्ड आने के बाद हर गाना लोग साथ में गाएंगे।
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