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शक्ति कम, आस ज्यादा... उमर अब्दुल्ला फिर बने जम्मू कश्मीर के सीएम

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नई दिल्ली: नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वह पहले भी एक बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन उनकी यह पारी हर तरह से खास मानी जा रही है। नए दौर की शुरुआत पांच साल बाद जम्मू-कश्मीर को निर्वाचित सरकार मिली है। हालांकि इस बीच अनुच्छेद 370 के तहत हासिल विशेष दर्जा तो समाप्त हो ही गया, राज्य की उसकी हैसियत भी नहीं रही। ऐसे में नई सरकार के मुखिया के तौर पर उमर अब्दुल्ला के सामने आम लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की कठिन चुनौती है। व्यावहारिक नजरिया अच्छी बात यह है कि जहां आम लोगों को भी उनकी कठिनाइयों का अंदाजा है, वहीं खुद उमर ने भी व्यावहारिक नजरिया अपनाने का संकेत दिया है। चुनाव के दौरान अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग पर कड़ा रुख अपनाने वाले उमर ने चुनाव नतीजे आने के बाद इस मसले पर अपना रुख नरम कर लिया। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात ऐसे नहीं हैं, जिनमें इस मुद्दे पर जोर देने का किसी को कुछ फायदा होगा। सहयोग पर जोर उम्मीद बढ़ाने वाली बात यह भी है कि चुनावी कड़वाहट को पीछे छोड़ते हुए सभी पक्षों ने सहयोग का रुख अपनाने का संकेत दिया है। न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने नई सरकार के साथ मिलकर काम करने का संकेत दिया है बल्कि खुद उमर ने भी पिछले दिनों एक इंटरव्यू में कहा कि उपराज्यपाल से टकराव मोल लेकर मैं जम्मू-कश्मीर की जनता का क्या भला कर पाऊंगा। संतुलन का प्रयास चाहे उपमुख्यमंत्री पद जम्मू संभाग से चुने गए विधायक को देने की बात हो या कांग्रेस के लिए कैबिनेट में स्थान खाली रखने की, उमर अब्दुल्ला यह संकेत दे रहे हैं कि वह सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। कांग्रेस ने फिलहाल सरकार को बाहर से समर्थन देने की बात कही है, लेकिन इसका कारण राज्य का दर्जा न मिलने को बताया है। इसमें इस सावधानी की झलक देखी जा सकती है कि मुद्दा मंत्री पदों की संख्या का या इंडिया ब्लॉक के घटक दलों में मतभेद का न बन जाए। फिसलन भरी राहइन तमाम शुरुआती पॉजिटिव संकेतों के बावजूद अभी से यह नहीं कहा जा सकता कि नई सरकार का यह कार्यकाल कितना फलप्रद साबित होने वाला है। राज्य का दर्जा वापस करने की मांग तो अपनी जगह है ही, एक-एक फैसले पर कैबिनेट और उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र का मसला सामने आ सकता है। ऐसे में देखना होगा कि इन सबके बीच जम्मू-कश्मीर की नई सरकार कितने सधे कदमों से आगे बढ़ती है।
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