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संपादकीय: मुंबई में अंडरवर्ल्ड के दौर की वापसी? कानून-व्यवस्था पर चुनौती

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महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और नेता बाबा सिद्दीकी की विजयादशमी के दिन मुंबई के बांद्रा में हुई हत्या अगर अचानक सबसे बड़े चुनावी मुद्दे के रूप में उभरती दिख रही है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। विधानसभा चुनावों के ऐन पहले हुई इस हत्या ने न केवल सबको सकते में डाल दिया बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि क्या देश की वित्तीय राजधानी एक बार फिर गैंगवॉर और अंडरवर्ल्ड के खौफ वाले दौर का गवाह बनने जा रही है। नब्बे के दशक का दौरसड़कों पर शूटआउट, गैंगवॉर और बड़े कारोबारियों, बिल्डरों, फिल्मी हस्तियों को धमकियां, वसूली, यहां तक कि हत्या भी मुंबई के लिए कोई नई बात नहीं हैं। नब्बे के दशक के उस दौर की यादें आज भी आम मुंबईकरों के मन से मिटी नहीं हैं। लेकिन कुछ तो मुंबई पुलिस की सख्ती और कुछ आर्थिक गतिविधियों के स्वरूप में आए बदलाव ने उस दौर को अतीत के हिस्से का रूप दे दिया। पुलिस तंत्र की कमजोरीसिद्दीकी की हत्या से वही डरावना अतीत अचानक वर्तमान में दस्तक देता महसूस हुआ। जिस तरह पहले से धमकी देकर और Y-लेवल पुलिस सुरक्षा को भेदते हुए बाबा सिद्दीकी की हत्या कर दी गई, वह अपराधियों के बढ़े हुए मनोबल के साथ ही पुलिसिया तंत्र की कमजोरी भी दर्शाता है। हत्या का असल मकसदशुरुआती रिपोर्टों में अपराध को अंजाम देने और उसकी जिम्मेदारी लेने के अंदाज के आधार पर इसे लॉरेंस बिश्नोई गैंग की करतूत बताया जा रहा है। हो सकता है यह सच हो, लेकिन ‘सलमान खान का साथ देना’ इतनी बड़ी वारदात का कारण होगा, यह मानना मुश्किल है। ध्यान रहे, इन चुनावों में धारावी री-डिवेलपमेंट प्रॉजेक्ट एक बड़ा मुद्दा है। खुद बाबा सिद्दीकी भी ईडी जांच के घेरे में थे। उन पर महाराष्ट्र हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन पद के दुरुपयोग का आरोप था। इस मामले में 462 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त हो चुकी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जांच से हत्या के असली कारणों का खुलासा होगा। कानून-व्यवस्था की कसौटीमगर सबसे बड़ी चुनौती है वित्तीय राजधानी में कानून-व्यवस्था की स्थिति को बिगड़ने नहीं देने की। हाल के दिनों में मुंबई और आसपास के क्षेत्रों में ऐसी कई घटनाएं हुईं जिनसे यह संकेत गया कि पुलिस-प्रशासन की कानून-व्यवस्था पर पकड़ कमजोर हो रही है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी इस घटना के बाद सबसे पहले यही कहा कि गैंगवॉर जैसे हालात किसी भी सूरत में नहीं बनने देना है। उनके ये शब्द ही सरकार और प्रशासन की सबसे बड़ी कसौटी होंगे।
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