New Delhi, 8 सितंबर . आज के समय में जिंदगी इतनी भागदौड़ भरी है कि खाना भी जल्दबाजी में खाया जाता है. जंक फूड तो अब घरों की प्लेटों में आम हो गया है. खाने का स्वाद तो मिल जाता है, लेकिन धीरे-धीरे यह भोजन शरीर को थका देता है और मन को बेचैन करता है.
आयुर्वेद हजारों सालों से कहता आया है कि भोजन सिर्फ पेट भरने की चीज नहीं है, यह हमारे शरीर, मन, बुद्धि, और यहां तक कि भावनाओं को भी आकार देता है.
आयुर्वेद के अनुसार, ताजा बना हुआ भोजन सात्विक होता है. यह भोजन पकने के कुछ घंटों के भीतर खा लेना चाहिए, क्योंकि तब तक इसमें ‘प्राणशक्ति,’ यानी जीवन ऊर्जा, बनी रहती है. पकने के 8 घंटे बाद वही भोजन राजसिक हो जाता है, और इसके बाद ‘तामसिक’ हो जाता है, यानी ऐसा खाना जो शरीर में सुस्ती, भारीपन और मानसिक थकावट लाता है.
इस बात की पुष्टि विज्ञान भी करता है. अमेरिकन नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, जो लोग ताजे, घर पर बने खाने का ज्यादा सेवन करते हैं, उनकी सेहत बेहतर रहती है. वे कम बीमार पड़ते हैं और मोटापा, डिप्रेशन और डायबिटीज जैसी समस्याओं से दूर रहते हैं.
दूसरी ओर, जो लोग बार-बार गरम किया गया या लंबे समय तक रखा हुआ बासी खाना खाते हैं, उनका पाचन कमजोर होता है, शरीर में टॉक्सिन्स बनते हैं और मन चिड़चिड़ा हो जाता है.
खासतौर पर बच्चों और युवाओं पर इसका गहरा असर पड़ता है. जो बच्चे जंक फूड और ठंडा खाना ज्यादा खाते हैं, उनकी एकाग्रता कम होती है, वे जल्दी थक जाते हैं और गुस्से या उदासी का शिकार हो सकते हैं.
ताजा और सात्विक भोजन न सिर्फ उनका मेटाबॉलिज्म ठीक रखता है, बल्कि मानसिक स्थिरता और व्यवहार में भी सुधार लाता है.
यही वजह है कि आयुर्वेद और विज्ञान दोनों इस बात पर जोर देते हैं कि खाना समय पर और शांत मन से खाना चाहिए, ताकि वह सिर्फ शरीर को नहीं, मन को भी पोषण दे सके.
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पीके/एबीएम
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