भारत में तेजी से बढ़ते कैब और बाइक, टैक्सी ऐप्स ने आम लोगों की यात्रा को आसान जरूर बनाया है, लेकिन टाइम के साथ इन कंपनियों पर सवाल भी खड़े होने लगे हैं. हाल ही में Rapido पर भ्रामक विज्ञापन और ग्राहकों की शिकायतों को न सुलझाने के चलते 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है. लेकिन ये घटना सिर्फ Rapido तक ही सीमित नहीं है, बल्कि Ola और Uber जैसी बड़ी कंपनियों पर भी कड़े नियमों की जरूरत को उजागर करती है.
OLA- UBER पर भी नकेल जरूरी
क्यों जरूरी है नकेल?इन सब को देखते हुए दिमाग में ये सवाल जरूर आता है कि अब Rapido के साथ-साथ OlaUber जैसे टैक्सी ऐप्स पर भी नकेल कसने की जरूरत है. क्योंकि ग्राहक अक्सर शिकायत करते हैं कि कैब बुक करने के बाद ड्राइवर बिना कारण कैंसिल कर देते हैं और इनका चार्ज सीधे तौर पर यूजर से वसूला जाता है. कभी-कभी तो ऐसा होता है कि ऐप पर दिखाए गए किराए की रकम और वास्तविक भुगतान में बड़ा फर्क आ जाता है.
ऐसे बढ़ते जा रही है इनकी मनमानी
इसके अलावा सर्ज प्राइसिंग यानी भीड़भाड़ के टाइम अचानक बढ़ा हुआ किराया लोगों की जेब पर भी भार डालता है. ऐसे में सीधा ये सवाल उठता है कि जब ये कंपनियां जनता से मोटा मुनाफा कमा रही हैं तो जिम्मेदारी और पारदर्शिता से काम क्यों नहीं करती.
ये नियम तीन महीने के अंदर लागू करें
सरकार ने दिया दोगुना किराया वसूलने का ‘परमिट‘हाल के दिनों में सरकार ने दोगुना किराया वसूलने का परमिट दे दिया था. अब ये कंपनियां पीक आवर्स में बेस फेयर से दोगुना तक चार्ज कर सकती हैं. पहले के टाइम में ये लिमिट 1.5 गुना थी. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इस बारे में नए नियम जारी किए हैं. इन नियमों के मुताबिक, नॉन –पीक आवर्स में किराया बेस फेयर से कम से कम 50 प्रतिशत तक ज्यादा होना चाहिए.
पीकआवर्समेंकिराया
सरकार ने सभी राज्य सरकारों को कहा है कि वो ये नियम तीन महीने के अंदर लागू करें.इसको लेकर मंत्रालय के मुताबिक मकसद ये है कि यात्रियों को ज्यादा डिमांड के टाइम उचित कीमत पर राइड मिले और कंपनियां मनमानी छूट न दे सकें. अलग-अलग तरह की गाड़ियों जैसे- टैक्सी, ऑटो-रिक्शा और बाइक टैक्सी के लिए बेस फेयर राज्य सरकारें तय करेंगी.
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