मुंबई। मुंबई में आयोजित फिक्की फ्रेम्स 2025, एशिया के सबसे बड़े मीडिया और एंटरटेनमेंट सम्मेलन, के पहले दिन बॉलीवुड के चार प्रतिष्ठित फिल्मकारों राहुल मित्रा, शूजीत सरकार, अश्विनी अय्यर तिवारी और राम माधवनी ने भारतीय सिनेमा के बदलते स्वरूप पर गहन चर्चा की। Bollywood’s Narrative Reset: Storytelling at a Crossroads शीर्षक वाले इस सत्र में कहानी कहने के नए चलन, दर्शकों की बदलती रुचियों और तकनीक के प्रभाव जैसे मुद्दों पर खुलकर बात हुई। इस संवाद का संचालन लोकप्रिय फिल्म समीक्षक और रेडियो प्रोग्रामिंग हेड स्टुती घोष ने किया।
राहुल मित्रा: दर्शकों का टेस्ट बदल रहा है
फिल्ममेकर, अभिनेता और ब्रांडिंग विशेषज्ञ राहुल मित्रा ने कहा कि आज के दर्शक पहले से कहीं अधिक समझदार हो गए हैं। उनके अनुसार, “अब दर्शक सतही मनोरंजन से आगे बढ़ चुके हैं, वे असली और जमीनी कहानियाँ चाहते हैं जिनमें किरदार विश्वसनीय हों।” मित्रा ने अपने सफर को याद करते हुए बताया कि कैसे एक पत्रकार से ब्रांडिंग प्रोफेशनल और फिर फिल्ममेकर बनने की उनकी यात्रा ‘अपनी आवाज़ को सुनाने की चाह’ से शुरू हुई। उन्होंने युवाओं को सलाह दी कि वे अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलें और जुनून के साथ अपने सपनों का पीछा करें।
शूजीत सरकार: हर फिल्म हर स्क्रीन के लिए नहीं
‘विकी डोनर’ और ‘पीकू’ जैसी फिल्मों के निर्देशक शूजीत सरकार ने कहा कि इंडिपेंडेंट सिनेमा को लेकर वितरण व्यवस्था पर दोबारा सोचने की ज़रूरत है।
उन्होंने कहा, “हर फिल्म हर स्क्रीन के लिए नहीं होती। कुछ फिल्में सीमित दर्शकों के लिए होती हैं, पर उनकी गहराई और कलात्मकता उन्हें विशेष बनाती है।” उन्होंने इंडिपेंडेंट फिल्मों की चुनौतियों पर बात करते हुए कहा कि भारत में वैकल्पिक सिनेमा को नए ढांचे की ज़रूरत है ताकि उसे उचित दर्शक मिल सकें।
अश्विनी अय्यर तिवारी: सिनेमा भावनाओं पर आधारित
‘नील बटे सन्नाटा’ और ‘बरेली की बर्फी’ जैसी संवेदनशील फिल्मों की निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी ने कहा कि भारतीय सिनेमा एक ऐसे मोड़ पर है जहां कहानियाँ और भी व्यक्तिगत और आत्मीय हो रही हैं। उन्होंने कहा, “सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि भावनात्मक पोषण का माध्यम है। कहानी तब असर करती है जब वह दिल से कही जाए।” उन्होंने बदलते दर्शकों के व्यवहार की चर्चा करते हुए कहा कि आज का दर्शक भावनाओं से जुड़ना चाहता है, न कि केवल चमक-धमक से। बातचीत के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि वे ‘कांतारा चैप्टर 1’ को थिएटर में देखने के लिए उत्साहित हैं।
राम माधवनी: तकनीक कला को मुक्त करती है
‘नीरजा’ और ‘आर्या’ जैसे प्रोजेक्ट्स के निर्माता-निर्देशक राम माधवनी ने कहा कि आधुनिक फिल्म निर्माण में तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने कहा, “Technology शब्द यूनानी शब्द Techne से बना है, जिसका अर्थ है ‘कला’। यानी तकनीक का मूल उद्देश्य कला को मुक्त करना है।” माधवनी ने कहा कि अगर सही ढंग से उपयोग किया जाए तो तकनीक फिल्मकारों को रचनात्मक रूप से और भी सशक्त बना सकती है।
फिक्की फ्रेम्स 2025 के इस सत्र ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय सिनेमा अब एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है, जहाँ कहानी की आत्मा और प्रामाणिकता को सबसे ऊपर रखा जा रहा है।
बदलते दर्शक, बढ़ती तकनीकी संभावनाएँ और कहानी कहने के नए प्रयोग — ये सब मिलकर भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को एक नई दिशा दे रहे हैं। राहुल मित्रा से लेकर राम माधवनी तक, सभी वक्ताओं ने यही संदेश दिया कि सिनेमा तभी सार्थक होगा जब वह जमीन से जुड़ा, भावनाओं से सराबोर और तकनीक से समर्थ हो।
राहुल मित्रा: दर्शकों का टेस्ट बदल रहा है
फिल्ममेकर, अभिनेता और ब्रांडिंग विशेषज्ञ राहुल मित्रा ने कहा कि आज के दर्शक पहले से कहीं अधिक समझदार हो गए हैं। उनके अनुसार, “अब दर्शक सतही मनोरंजन से आगे बढ़ चुके हैं, वे असली और जमीनी कहानियाँ चाहते हैं जिनमें किरदार विश्वसनीय हों।” मित्रा ने अपने सफर को याद करते हुए बताया कि कैसे एक पत्रकार से ब्रांडिंग प्रोफेशनल और फिर फिल्ममेकर बनने की उनकी यात्रा ‘अपनी आवाज़ को सुनाने की चाह’ से शुरू हुई। उन्होंने युवाओं को सलाह दी कि वे अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलें और जुनून के साथ अपने सपनों का पीछा करें।
शूजीत सरकार: हर फिल्म हर स्क्रीन के लिए नहीं
‘विकी डोनर’ और ‘पीकू’ जैसी फिल्मों के निर्देशक शूजीत सरकार ने कहा कि इंडिपेंडेंट सिनेमा को लेकर वितरण व्यवस्था पर दोबारा सोचने की ज़रूरत है।
उन्होंने कहा, “हर फिल्म हर स्क्रीन के लिए नहीं होती। कुछ फिल्में सीमित दर्शकों के लिए होती हैं, पर उनकी गहराई और कलात्मकता उन्हें विशेष बनाती है।” उन्होंने इंडिपेंडेंट फिल्मों की चुनौतियों पर बात करते हुए कहा कि भारत में वैकल्पिक सिनेमा को नए ढांचे की ज़रूरत है ताकि उसे उचित दर्शक मिल सकें।
अश्विनी अय्यर तिवारी: सिनेमा भावनाओं पर आधारित
‘नील बटे सन्नाटा’ और ‘बरेली की बर्फी’ जैसी संवेदनशील फिल्मों की निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी ने कहा कि भारतीय सिनेमा एक ऐसे मोड़ पर है जहां कहानियाँ और भी व्यक्तिगत और आत्मीय हो रही हैं। उन्होंने कहा, “सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि भावनात्मक पोषण का माध्यम है। कहानी तब असर करती है जब वह दिल से कही जाए।” उन्होंने बदलते दर्शकों के व्यवहार की चर्चा करते हुए कहा कि आज का दर्शक भावनाओं से जुड़ना चाहता है, न कि केवल चमक-धमक से। बातचीत के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि वे ‘कांतारा चैप्टर 1’ को थिएटर में देखने के लिए उत्साहित हैं।
राम माधवनी: तकनीक कला को मुक्त करती है
‘नीरजा’ और ‘आर्या’ जैसे प्रोजेक्ट्स के निर्माता-निर्देशक राम माधवनी ने कहा कि आधुनिक फिल्म निर्माण में तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने कहा, “Technology शब्द यूनानी शब्द Techne से बना है, जिसका अर्थ है ‘कला’। यानी तकनीक का मूल उद्देश्य कला को मुक्त करना है।” माधवनी ने कहा कि अगर सही ढंग से उपयोग किया जाए तो तकनीक फिल्मकारों को रचनात्मक रूप से और भी सशक्त बना सकती है।
फिक्की फ्रेम्स 2025 के इस सत्र ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय सिनेमा अब एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है, जहाँ कहानी की आत्मा और प्रामाणिकता को सबसे ऊपर रखा जा रहा है।
बदलते दर्शक, बढ़ती तकनीकी संभावनाएँ और कहानी कहने के नए प्रयोग — ये सब मिलकर भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को एक नई दिशा दे रहे हैं। राहुल मित्रा से लेकर राम माधवनी तक, सभी वक्ताओं ने यही संदेश दिया कि सिनेमा तभी सार्थक होगा जब वह जमीन से जुड़ा, भावनाओं से सराबोर और तकनीक से समर्थ हो।
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