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रूपकंवर सती कांड: वो मामला जिसने राजस्थान की राजनीति को हिला दिया था

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Mohar Singh/BBC रूप कंवर (फ़ाइल फोटो)

राजस्थान के चर्चित रूपकंवर सती कांड के आठ अभियुक्तों को बरी कर दिया गया है.

इस फैसले के बाद 14 महिला संगठनों के एक समूह ने कहा है कि यह फैसला सती प्रथा को बढ़ावा देने वाला है. इसके साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री भजन लाल से इस फैसले के ख़िलाफ़ अपील दायर करने की मांग की है.

दिवराला सती कांड के समय रूपकंवर की उम्र थी 18 साल और कुछ महीने.

घटना के 37 साल बाद उस सती कांड संबंधी महिमा मंडन मामले का फ़ैसला आया है. यानी रूपकंवर की उम्र से भी दोगुना समय तो अदालत में लग गया.

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सामाजिक न्याय और महिला अधिकारों के लिए निरंतर संघर्षरत कविता श्रीवास्तव 1215 के मैग्नाकार्टा से भी पुराने समय से चली आ रहे ऐसे फ़ैसलों को रेखांकित करने वाली उक्ति को दुहराती हैं, "जस्टिस डिलेड, जस्टिस डिनाइड. अब 37 साल बाद क्या मायने हैं? इस मामले में जब 2004 में बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं समेत लोग बरी हुए थे, तो तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने अपील करने से ही इनकार कर दिया था. अब भी कोई अपील होगी, इसकी संभावना नहीं."

राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को इस्तीफ़ा देना पड़ा था. रूपकंवर के सती प्रकरण में एक-एक कर भले ज़्यादातर अभियुक्त बरी होते गए हों, लेकिन दिवराला में इस प्रकरण को लेकर आज भी सन्नाटा गूँजता है.

ऐसे लगता है, मानो लोग बेज़ुबान हो गए हैं. दुनिया भर में शोर पैदा कर देने वाले इस गाँव में अब सती को लेकर कोई आवाज़ भी नहीं निकलती.

महिला संगठनों ने क्या कहा?

रूप कंवर सती कांड मामले में फैसला आने के बाद 14 महिला संगठनों के एक समूह ने साझा बयान जारी किया है.

इस बयान में संगठनों ने मुख्यमंत्री भजन लाल से बरी हुए लोगों के खिलाफ़ अपील दायर करने या कोई अन्य उपाय किए जाने की मांग की है, जिससे कि न्याय सुनिश्चित हो सके.

साथ ही राज्य में सती प्रथा को बढ़ावा नहीं दिए जाने की अपील की है.

संगठनों ने कहा है, “31 जनवरी 2004 को 17 से अधिक लोगों को बरी कर दिया गया था, इनमें वे मामले भी शामिल थे जिनमें तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़, खाद्य एवं परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, सती धर्म रक्षा समिति और राजपूत सभा भवन जयपुर के वरिष्ठ नेता शामिल थे.”

“राज्य सरकार के विधि विभाग ने अपील नहीं करने का फैसला किया था, जबकि महिला संगठनों ने इन लोगों को बरी किए जाने को चुनौती देने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था.”

संगठनों ने कहा, “यह मामला बहुत ही लापरवाही भरा था और न तो पुलिस, न ही अभियोजन पक्ष और न ही जयपुर में सती विशेष अदालत के न्यायाधीश ने निष्पक्ष काम किया था. अपील करने के लिए यह एक स्पष्ट मामला था. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का यह रूख था कि इस मामले में आगे कोई कानूनी कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है.”

संगठनों ने कहा, “हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, 14 संगठनों और लोगों के साथ हमने राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर की. हमारी याचिका पिछले 20 सालों से लंबित है.”

दिवराला में अब कैसा है माहौल?

दिवराला गाँव के चप्पे-चप्पे पर रूपकंवर के सतीकांड की दास्तां भले बिखरी हुई हो, लेकिन बात करो तो लगता है जैसे कोई घटना घटी ही नहीं.

सती निवारण मामलों की विशेष अदालत ने बुधवार को सीकर के दिवराला में चार सितंबर 1987 को हुए रूपकंवर सती कांड के बाद घटना का महिमा मंडन करने के आठ अभियुक्तों को बरी किया, तो दिवराला में चुप्पियों का गुबार उड़ रहा था.

लोगों के मानस पटल का हाल ये है कि अतीत में कई टीवी चैनलों पर बोल चुके लोग भी डरे-डरे हैं और किसी विवाद में पड़ना नहीं चाहते.

वे कहते हैं, बोलेंगे तो या तो समाज के लोग नाराज़ हो जाएंगे या फिर पुलिस प्रताड़ित करेगी.

लेकिन देश और दुनिया में राजस्थान और देश की आधुनिकता पर काला धब्बा लगा देने वाले सती प्रकरण के 37 साल बाद भी लोगों के जेहन में सारी यादें तरोताज़ा हैं.

लेकिन कोई भी बोलना नहीं चाहता कि इस गाँव में 18 साल और कुछ महीनों की रूपकंवर को उसके पति के साथ जीवित चिता में बिठाकर जला दिया गया था.

अदालत में क्या हुआ?

सती मामलों की अदालत में अभियोजन पक्ष किसी पर कोई आरोप ही साबित नहीं कर पाया.

अभियुक्तों के वकील अमन चैन सिंह शेखावत बताते हैं कि जिन्हें बरी किया गया है, वे घटना के समय 12-15 से 17-18 साल की उम्र के स्कूली छात्र थे और उनके ख़िलाफ़ ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला कि उन्होंने सती महिमा मंडन किया था.

31 जनवरी, 2004 को इसी अदालत ने बीजेपी नेता राजेंद्र सिंह राठौड़, कांग्रेस नेता प्रताप सिंह खाचरियावास और रूपकंवर के भाई गोपाल सिंह राठौड़ सहित 25 लोगों को बरी कर दिया था.

मूल घटना के बाद गिरफ़्तार किए गए 32 लोगों को सीकर के नीम का थाना के एडीजे कोर्ट ने अक्तूबर 1996 में बरी किया था.

इस प्रकरण ने राजस्थान की सियासत की सारी सम्तें पलट दी थीं, जिसमें सत्तारूढ़ दल के पहाड़ जैसे नेता हरिदेव जोशी धुआं बनकर उड़ गए.

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image Getty Images सांकेतिक तस्वीर उस समय सरकार का क्या रहा रुख़?

इस प्रकरण में प्रदेश का राजपूत समाज मोटे तौर पर उद्वेलित था और उसका मानना था कि यह उनका धार्मिक मामला है और सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं करे.

विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और विधायक भी इस मामले में राजपूत समाज के साथ हो गए, लेकिन तत्कालीन बीजेपी नेता और जाति से राजपूत होने के बावजूद भैरोसिंह शेखावत इसके ख़िलाफ़ डटे और उन्होंने कहा कि यह ग़लत परंपरा है और एक आधुनिक समाज को इस तरह की परंपराओं का पोषण नहीं करना चाहिए.

भैरोसिंह शेखावत राजपूत समाज के जुलूस में नहीं गए, उन्होंने इसके प्रति नाराज़गी भी जताई.

उस दौर की राजनीति पर नज़र रखने वालों के मुताबिक़ तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने माना कि सती होने के बाद परिवार को संस्कार करने से नहीं रोकना चाहिए.

राज्य के गृहमंत्री गुलाब सिंह शक्तावत ने पूरे प्रकरण को धार्मिक मामला बताया और इसमें हस्तक्षेप से इनकार करते रहे.

जोशी मानते थे कि ऐसा करने से राजपूत समाज में कांग्रेस के प्रति रोष बढ़ेगा. यह राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से उचित नहीं होगा. इसलिए प्रशासन अपनी क़ानूनी कार्रवाई करे और परिवार को मृत्यु उपरांत के सभी संस्कार हिंदू रीति से परंपरा अनुसार बिना किसी विघ्न बाधा के करने दिए जाएँ.

तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह चाहते थे कि सरकार तत्काल प्रभाव से इन सामाजिक संस्कारों को होने देने से रोके. जोशी ने बूटा सिंह की सलाह मानने से इनकार कर दिया, तो टकराव बढ़ गया और जोशी की शिकायतें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से की गईं. राजीव गांधी भी हरिदेव जोशी से बहुत नाराज़ हो गए.

केंद्र के दबाव के बाद बना कानून

इस बीच सती समर्थकों और सरकार के बीच संघर्ष चलता रहा और आख़िरकार सती विरोधियों और केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह के भारी दबाव के बाद प्रदेश में 3 जनवरी 1988 को सती निवारण अधिनियम लागू हुआ.

लेकिन रूपकंवर के सती होने की पहली बरसी पर जब 1988 को दिवराला में रूपकंवर के चितास्थल पर हज़ारों लोगों की उपस्थिति वाला चुनरी महोत्सव हुआ, तो यह प्रकरण एक बार फिर देश और दुनिया के मीडिया की सुर्ख़ियों में रहा.

जोशी सरकार ने इस समारोह को पुलिस नियंत्रण में बिना किसी व्यवधान के संपन्न होने दिया.

उस समय मुख्यमंत्री जोशी के क़दमों के प्रति सहानुभूति रखने वाले एक पुराने पत्रकार सीताराम झालानी ने उस समय की घटनाओं का बारीकी से हवाला देते हुए बताया था कि जोशी को कांग्रेस संगठन की चिंता थी और उन्हें डर था कि रूपकंवर सती प्रकरण में सती करना कांग्रेस से राजपूत समाज को पूरी तरह छिटका देना है और बाद में वही हुआ.

राजस्थान की राजनीति में वोटों के गणित के हिसाब से यह बहुत नाज़ुक मामला था.

लेकिन उस समय हद हो गई, जब राजपूत समाज ने जयपुर की सड़कों पर नंगी तलवारें लेकर जुलूस निकाला.

मुख्यमंत्री जोशी ने पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया कि नंगी तलवारों के इस जुलूस में कोई व्यवधान नहीं डाला जाए, जबकि केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह चाहते थे कि इस जुलूस को रोकने के लिए सेना को बुलाने की भी ज़रूरत पड़े, तो भी बुला लिया जाए.

दिवराला सती कांड का लोकसभा में भारी विरोध हुआ और कांग्रेस की जमकर किरकिरी हुई. कांग्रेस के अपने विधायक और पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह भाटी ने सती प्रकरण को लेकर जोशी सरकार की विधानसभा में जमकर खिंचाई की.

उस समय कई महिला संगठनों ने चुनरी महोत्सव को सती प्रथा का महिमामंडन बताया और वे उसके विरोध में उतरे.

image hcraj.nic.in राजस्थान हाई कोर्ट ने एक चिट्ठी को ही जनहित याचिका मानकर समारोह पर रोक लगा दी थी हाई कोर्ट के रोक के बावजूद हुआ चुनरी महोत्सव

सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों ने महोत्सव को रोकने के लिए राजस्थान हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा के नाम चिट्ठी लिखी.

जस्टिस वर्मा ने 15 सितंबर को चिट्ठी को ही जनहित याचिका मानकर समारोह पर रोक लगा दी थी. हाई कोर्ट ने चुनरी महोत्सव को सती प्रथा का महिमामंडन माना और सरकार को आदेश दिया कि यह समारोह किसी भी स्थिति में न हो.

रोक के बावजूद दिवराला गाँव में 15 सितंबर की रात से ही लोग जमा होने लगे. गाँव में बाहर से भी हज़ारों लोग चुनरी महोत्सव के लिए इकट्ठा हुए. रूपकंवर सती कांड ने राजस्थान की कांग्रेस सरकार की इज़्ज़त धूल में मिला दी और उसकी देशभर में आलोचना हुई.

तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने गृह मंत्री गुलाब सिंह शक्तावत की अध्यक्षता में कमेटी गठित की. राज्य सरकार एक अक्तूबर 1987 को सती निवारण और उसके महिमामंडन को लेकर एक अध्यादेश लाई.

कविता श्रीवास्तव याद करती हैं कि यह क़ानून महिला अधिकारों की बात करने वाले संगठनों के दबाव की वजह से ही बना था.

अध्यादेश के तहत किसी विधवा को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सती होने के लिए उकसाने वालों को फांसी या उम्र क़ैद की सज़ा देने और ऐसे मामलों को महिमामंडित करने वालों को सात साल क़ैद और अधिकतम 30 हज़ार रुपए जुर्माना लगाने का प्रावधान रखा गया था.

बाद में राजस्थान सरकार ने 1987 में क़ानून बनाया, जो जनवरी 1988 में लागू हुआ.

वरिष्ठ पत्रकार शकील अख़्तर उस समय नवभारत टाइम्स में थे और 1987 में जब स्वामी अग्निवेश ने लाल क़िले से दिवराला तक की पदयात्रा की, तो उन्होंने उसे कवर किया था.

वे याद करते हैं, "बहुत तनाव था. नंगी तलवारें लिए राजस्थान में सती समर्थक प्रदर्शन कर रहे थे."

उस समय सेना में सेवारत रहे और इस समय गाँव के पंच मांगू सिंह शेखावत याद करते हैं कि अब गाँव में सब कुछ शांत है और सती प्रकरण जैसा कुछ नहीं है. लेकिन गाँव के सरपंच सहित अनेक जनप्रतिनिधि अब इस मुद्दे पर बात करने से कतराते हैं.

अलबत्ता, उस समय इस क्षेत्र में शिक्षक रहे एक बुज़ुर्ग का कहना है, "अंतिम संस्कार की चिता पर जलती हुई 18 साल की रूपकंवर. वह दृश्य बहुत वीभत्स था. यह इसलिए भी हैरानी वाला था कि उस दिन इस दृश्य को देखने के लिए दूर से दूर के लोग उत्सुक थे और गाँव की तरफ़ उमड़ पड़े थे."

लोगों ने अपने स्तर पर इसे लेकर अलग-अलग दावे किए. लोगों ने ये भी दावे किए कि रूपकंवर ने स्वेच्छा से ऐसा किया था.

image Getty Images सांकेतिक तस्वीर कौन थीं रूपकंवर?

तमाम मीडिया और पुलिस रिपोर्टों में उल्लेख है कि रूपकंवर का सती होना स्वैच्छिक था. उनकी शादी माल सिंह से महज सात महीने पहले हुई थी.

माल सिंह बीएससी के छात्र थे और जो परिवार के साथ दिवराला में रहते थे. लेकिन हैरानी की बात यह थी कि यह घटना एक शिक्षक के घर घटी. रूपकंवर के ससुर शिक्षक ही थे.

रूपकंवर कोई अनपढ़ बालिका नहीं थी. वो जयपुर के ट्रांसपोर्ट नगर में एक निजी स्कूल में मैट्रिक तक पढ़ी थी. वह किसी भी तरह रूढ़िवादी नहीं लगती थी और कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि वह ऐसा कर सकती है.

रूपकंवर अपनी शादी की तस्वीरों में पारंपरिक घूंघट के बजाय बिना घूंघट ही दिखती हैं. लेकिन गाँव के लोगों का मानना था कि वह हर दिन चार घंटे सती देवी की पूजा करती थी. वह गीता पढ़ती थी. हनुमान चालीसा का पाठ करती थी और मंत्रोच्चार करती थी. कहा गया था कि वह प्रसन्नता से सती हुई.

राज्य के एक पुराने पुलिस अधिकारी बताते हैं, "राज्य सरकार 4 सितंबर से 16 सितंबर के बीच पूरी तरह पंगु नज़र आई. चुनरी महोत्सव के दिन तक गृह मंत्री गुलाब सिंह शक्तावत इसे धार्मिक मामला बता रहे थे और इसमें हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ थे. उनका साफ़ निर्देश थे कि अब इस मामले में पुलिस को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए."

चुनरी महोत्सव में रूपकंवर के पिता बाल सिंह राठौर भी शामिल थे. उस दिन देश भर से क़रीब दो लाख लोग सती स्थल पर आए थे. चुनरी समारोह के आयोजन तक क़रीब पाँच लाख लोग आ चुके थे.

पुलिस ने रूपकंवर के ससुर सुमेर सिंह, उनके भाई मंगेश सिंह, मृतक पति के भाई 10 वर्षीय भूपेंद्र सिंह, परिवार के पुरुषों के सिर मूंडने वाले नाई बंसीधर, अंतिम संस्कार करवाने वाले पुजारी बाबू लाल को गिरफ़्तार कर लिया गया था.

लेकिन बाद में धीरे-धीरे सभी छूटते चले गए. न सरकारों के आदेश पर अदालतों में ठीक से पैरवी हुई और न ही न्यायालयों में सरकारी वकीलों ने किसी को सज़ा दिलाने की कोशिशें ही कीं.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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