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पहलगाम हमला: बैसरन घाटी को संभालने की ज़िम्मेदारी किसकी है, यह पर्यटकों के लिए कब खुलती और बंद होती है?

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BBC बैसरन घाटी में 22 अप्रैल को हुए चरमपंथी हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी

बाक़ी दिनों की तरह ही 22 अप्रैल को भी पर्यटकों की भीड़ जम्मू- कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में उमड़ आई थी. यह जगह पहलगाम बाज़ार से छह किलोमीटर की दूरी पर है.

उसी दिन दोपहर में एक चरमपंथी हमला हुआ. इस हमले में 26 लोग मारे गए. मरने वालों में 25 पर्यटक थे और एक स्थानीय युवक.

बीते तीन दशक में जम्मू-कश्मीर में यह पहला इतना बड़ा हमला है जिसमें पर्यटकों को निशाना बनाया गया.

हमने जानने की कोशिश की कि आख़िर इस ख़ूबसूरत बैसरन घाटी की देखरेख का ज़िम्मा किसका है? यह कब खुलती और बंद होती है? आइए देखते हैं, इससे जुड़े लोग और स्थानीय नागरिक क्या बता रहे हैं.

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देखरेख का ज़िम्मा image BBC बैसरन घाटी की देखरेख पहलगाम डेवलपमेंट अथॉरिटी के पास है

बैसरन घाटी की देखरेख पहलगाम डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीडीए) करती है. बैसरन की तरह ही पहलगाम के दूसरे पर्यटक स्थलों की निगरानी भी अथॉरिटी करती है.

बीबीसी हिंदी ने अथॉरिटी से जुड़े तीन लोगों से बात की. इनका कहना था कि बैसरन पार्क की निगरानी उनका विभाग ही करता है.

हालाँकि, निगरानी की बात समझाते हुए वे बताते हैं कि बैसरन या पहलगाम की दूसरी जगहों को मेंटेंन रखने का काम अथॉरिटी करती है.

अथॉरिटी बैसरन घाटी, बेताब घाटी और पहलगाम के दूसरे छोटे-बड़े पार्कों की देखरेख के लिए इन्हें निजी ठेकेदारों को देती है. यह ठेका तीन साल के लिए होता है.

नाम न बताने की शर्त पर पहलगाम में तैनात अथॉरिटी के एक और कर्मचारी ने हमें बताया कि बीते साल बैसरन पार्क के लिए तीन करोड़ रुपए का टेंडर एक निजी ठेकेदार को तीन साल के लिए दिया गया है.

बीबीसी ने उस निजी ठेकेदार से भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली.

बैसरन घाटी कब खुलती और बंद होती है? image BBC मौसम ख़राब होने पर बैसरन घाटी को बंद रखा जाता है

अथॉरिटी के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बीबीसी हिंदी को बताया कि बैसरन पार्क या बेताब घाटी पूरे साल पर्यटकों के लिए खुली रहती है.

इस अधिकारी का कहना था कि जब कभी मौसम बहुत ख़राब होता है, तब बैसरन को पर्यटकों के लिए थोड़े वक़्त के लिए बंद किया जाता है. उनका कहना था कि जब भारी बर्फ़बारी होती है तो आम कश्मीरी भी अपने घरों में बंद हो जाते हैं. इस सूरत में बैसरन जैसी ऊँची जगहों पर जाने से सैलानी भी परहेज़ करते हैं.

इस अधिकारी का कहना था कि पुलिस या दूसरी किसी सुरक्षा एजेंसी ने कभी भी हमें बैसरन पार्क को खुला या बंद रखने की बात नहीं कही.

वह बताते हैं कि बैसरन घाटी को खोलने के बारे में पुलिस की तरफ़ से हमारे साथ किसी भी तरह की ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई जिसमें 'सिक्योरिटी क्लीयरेंस' की बात कही गई हो.

अथॉरिटी के एक और अधिकारी का कहना था कि बीते साल अमरनाथ यात्रा के दौरान क़रीब दो महीने के लिए बैसरन घाटी को बंद किया गया था. हालाँकि, पुलिस ने उस हवाले से भी हमारे साथ कोई कम्युनिकेशन नहीं किया था.

इस अधिकारी का कहना था कि बैसरन घाटी में कभी भी पुलिस या सुरक्षाकर्मी नहीं होते थे. वह भी बताते हैं कि बैसरन को पूरे साल खुला रखा जाता था. उनका यह भी कहना था कि बीते तीन साल में कभी भी पुलिस की तरफ़ से पार्क खोलने के बारे में किसी तरह की इजाज़त लेने की बात हमारे विभाग के साथ साझा नहीं की गई.

image BBC

एक और अधिकारी ने बताया कि वह इस बारे में कोई भी टिप्पणी नहीं करना चाहते.

इस अधिकारी ने मुझे बताया कि जो सवाल आप पूछ रहे हैं, हम उनका जवाब नहीं दे सकते हैं. यह एक संवेदनशील मामला है.

पहलगाम डेवलपमेंट ऑथॉरिटी के जिन भी अधिकारियों से बीबीसी ने बात की, उन सब का कहना था कि उनका नाम ज़ाहिर न किया जाए.

दूसरी ओर, पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बैसरन को खोलने के लिए पुलिस की इजाज़त नहीं ली जाती रही है. यह पुलिस अधिकारी एक बार पाँच साल पहले और दूसरी बार क़रीब एक साल पहले अनंतनाग में तैनात रहे हैं. अभी वहाँ नहीं हैं.

जब मैंने उनसे जानना चाहा कि क्या आप के दौर में पहलगाम डेवलपमेंट अथॉरिटी से बैसरन घाटी के लिए 'सिक्योरिटी क्लीयरेंस' की बात होती थी. उनका कहना था कि उनके समय में कभी ऐसा नहीं हुआ.

घोड़े वालों का क्या कहना है image BBC

पहलगाम में पोनी स्टैंड नंबर-एक के अध्यक्ष बशीर अहमद वानी ने बीबीसी हिंदी को बताया कि उनके स्टैंड के घोड़े वाले हमले से पहले हर रोज़ पर्यटकों को बैसरन पार्क ले कर जाते थे.

उन्होंने बताया, "जिस दिन बैसरन में पर्यटकों पर हमला किया गया, उस दिन भी मेरे स्टैंड से दस घोड़े पर्यटकों को बैसरन ले गए थे. बैसरन घाटी कभी बंद ही नहीं रहती थी. इस साल की शुरुआत से ही हम वहाँ पर्यटकों को ले जाते रहे हैं. मेरे स्टैंड से हर दिन बैसरन घाटी के लिए पचास घोड़े जाते थे. मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी में सिर्फ़ साल 2024 में बैसरन को अमरनाथ यात्रा के दौरान बंद होते देखा है."

वह बताते हैं, "मेरे पिता भी घोड़े से लोगों को ले जाने- लाने का काम करते थे. उन्होंने मुझे बताया है कि पहलगाम में दशकों पहले दो ही 'साइट सीन' थीं. एक शिकार गह और दूसरी बैसरन घाटी. बाद में शिकार गह तक गाड़ियों के लिए रास्ता बनाया गया और घोड़े वालों ने वहाँ जाना बंद कर दिया."

इस समय पर्यटकों के लिए पहलगाम में बैसरन घाटी समेत कम से कम सात 'साइट सीन' हैं. स्थानीय लोग 'साइट सीन' शब्द उन जगहों के लिए इस्तेमाल करते हैं, जहाँ घोड़ों पर बैठकर जाया जाता है.

बशीर अहमद बताते हैं कि उनके वालिद के ज़माने से ही पर्यटक बैसरन घाटी जाते रहे हैं. उनका ये भी कहना था कि कश्मीर में चरमपंथ शुरू होने से पहले भी पर्यटक और स्थानीय लोग बैसरन आते रहे हैं.

बशीर अहमद के मुताबिक़, बैसरन जाने के लिए दो ट्रेक हैं. एक ट्रेक की दूरी क़रीब तीन किलोमीटर है और दूसरे की छह किलोमीटर. एक ट्रेक का नाम 'हिल पार्क' है और दूसरे का नाम 'सीएम बेस रोड' है.

घोड़े वालों के एक अन्य एसोसिएशन से जुड़े घोड़े वाले ने मुझे बताया कि हमने बैसरन घाटी की जो फ़ोटो या वीडियो 22 अप्रैल से पहले ली या बनाई है, उसे शेयर करने से डर रहे हैं.

उनका कहना था कि जब चीज़ें सामान्य हो जाएँगी, तब हम आपको कई वीडियो दिखा सकते हैं. वे वीडियो इस बात को साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि बैसरन पूरे साल खुली रहती है.

, गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने हमले के कुछ दिन बाद ऑल पार्टी मीटिंग में बताया था कि बैसरन को खोलने के लिए पुलिस से इजाज़त नहीं ली गई थी.

स्थानीय लोग क्या बताते हैं image BBC स्थानीय लोगों का कहना है कि बैसरन पार्क कभी बंद नहीं होता है

बीबीसी ने पहलगाम में कम से कम दस स्थानीय लोगों से भी बात की और यह जानना चाहा कि क्या बैसरन घाटी कभी बंद रहती थी. इन सभी व्यक्तियों का कहना था कि उन्होंने कभी भी बैसरन को बंद होते नहीं देखा है.

एक स्थानीय व्यक्ति ने मुझे नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि उन्होंने कभी भी बैसरन पार्क को बंद होते नहीं देखा है. इस व्यक्ति ने भी हमें बताया कि बैसरन घाटी को सिर्फ़ साल 2024 में अमरनाथ यात्रा के दौरान दो महीनों के लिए बंद रखा गया था. उनका यह भी कहना था कि उस दौरान वहाँ सुरक्षाबलों को रखा गया था.

बैसरन घाटी के बारे में अहम जानकारी image BBC बैसरन में कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है

पहलगाम बाज़ार से बैसरन पार्क तक जो रास्ता जाता है, वह उबड़-खाबड़ पहाड़ी ट्रेक है. वहाँ जाने वाले या तो घोड़े पर जाते हैं या फिर पैदल.

बैसरन पार्क क़रीब आठ हज़ार फ़ुट की ऊँचाई पर है. ये घने जंगलों से घिरी घाटी है. बैसरन घाटी को 'मिनी स्विटज़रलैंड' भी कहा जाता है.

बैसरन पार्क के अंदर जाने के लिए टिकट लेना पड़ता है. इसके लिए बालिग लोगों का टिकट पैंतीस रुपए का है और बच्चों के लिए बीस रुपए का.

पहलगाम दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग ज़िले का हिस्सा है. श्रीनगर से पहलगाम की दूरी क़रीब सौ किलोमीटर है.

बैसरन में कई बॉलीवुड फिल्मों, स्थानीय ड्रामों और कुछ छोटी फिल्मों की शूटिंग भी हुई है.

यही नहीं, हर साल लाखों श्रद्धालु पहलगाम बाज़ार से होकर अमरनाथ गुफ़ा तक पहुँचते हैं. पहलगाम के नुनवन में यात्रा का बेस कैंप होता है. इसी बेस कैंप से हर दिन यात्री जत्थों की शक़्ल में गुफ़ा के लिए निकलते हैं.

अमरनाथ यात्रा के दौरान पहलगाम से लेकर गुफ़ा तक कड़ी सुरक्षा के इंतज़ाम होते हैं. सुरक्षाबलों को ऊँचे पहाड़ों पर तैनात किया जाता है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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