हिमाचल प्रदेश में आठ साल के एक छात्र के परिवार ने शिक्षकों पर गंभीर आरोप लगाए हैं. परिवार का कहना है कि शिक्षकों ने बच्चे के साथ मारपीट की, अपमानजनक व्यवहार किया और परिवार को धमकाया.
पीड़ित बच्चे के पिता की शिकायत पर शिमला पुलिस ने स्कूल के प्रधानाध्यापक देवेंद्र कुमार सहित तीन शिक्षकों बाबू राम और कृतिका ठाकुर के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.
ये मामला हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 100 किलोमीटर दूर रोहड़ू उपमंडल के खड्डापानी क्षेत्र में स्थित राजकीय प्राथमिक पाठशाला का है.
बीबीसी ने अभियुक्त बनाए गए तीनों शिक्षकों का पक्ष जानने के लिए कई बार संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिल सका. पांच नवंबर को गुरु पर्व के चलते स्कूल में सरकारी अवकाश भी है.
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क्या हैं आरोप?यह मामला बीते दो नवंबर को पुलिस शिकायत दर्ज होने के बाद से सुर्खियों में है.
पुलिस को दी गई शिकायत में दावा किया गया है कि कक्षा एक में पढ़ने वाले बच्चे को प्रधानाध्यापक और दो अन्य शिक्षक बीते कई महीनों से लगातार पीट रहे थे.
पिता ने पुलिस को दी शिकायत में बताया कि लगातार मारपीट के कारण बच्चे के कान से ख़ून बहने लगा और उसका कान का पर्दा क्षतिग्रस्त हो गया है.
सबसे चौंकाने वाला आरोप यह है कि शिक्षक बच्चे को स्कूल के शौचालय में ले जाकर उसकी पैंट में बिच्छूबूटी (एक कांटेदार पौधा) डाल दिया करते थे, जिससे बच्चे को गंभीर शारीरिक पीड़ा हुई.
यह पौधा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाया जाता है, जिसके संपर्क में आने पर शरीर पर तेज खुजली और जलन शुरू हो जाती है.
पीड़ित बच्चे के पिता ने यह भी आरोप लगाया कि शिक्षक बच्चे को धमकाते थे कि अगर उसने शिकायत की तो उसे पुलिस से पकड़वा देंगे.
पिता ने बताया, "30 अक्तूबर को प्रधानाध्यापक ने बच्चे को स्कूल से निकालने की धमकी दी और मामला सार्वजनिक होने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी. उन्होंने कहा कि 'हम तुम्हें जला देंगे'."
पिता की शिकायत के मुताबिक़, उन्होंने शुरुआत में बच्चे की शिकायत पर बहुत ध्यान नहीं दिया था क्योंकि उन्हें लगा कि स्कूल में शरारत करने पर बच्चों को थोड़ी सज़ा मिलनी चाहिए, लेकिन बच्चा प्रतिदिन शिकायत करने लगा तो वे शिकायत लेकर पुलिस के पास गए.
शिकायत में यह भी दावा किया गया है कि शिक्षकों ने पिता को पुलिस में शिकायत दर्ज न करने या सोशल मीडिया पर घटना पोस्ट न करने की चेतावनी दी थी.
इसके अलावा, छात्र के पिता ने यह भी आरोप लगाया है कि स्कूल की शिक्षिका कृतिका ठाकुर के पति नितीश ठाकुर पिछले एक साल से स्कूल में अवैध रूप से छात्रों को पढ़ा रहे हैं.
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पुलिस ने शिकायत के आधार पर भारतीय न्याय संहिता की कई धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. इनमें धारा ग़लत तरीके से क़ैद में रखने, स्वेच्छा से चोट पहुंचाने, आपराधिक धमकी, समान इरादे से आपराधिक कृत्य जैसे अभियोग लगाए गए हैं. इसके अलावा किशोर न्याय अधिनियम के अंतर्गत बच्चे के प्रति क्रूरता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया है.
ये प्रावधान जबरन कपड़े उतारने, मानवीय गरिमा के विरुद्ध अपमानजनक कृत्यों और अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य के ख़िलाफ़ अपराधों से संबंधित हैं.
इस मामले में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि जिन तीन शिक्षकों पर आरोप लगे हैं, उनके ख़िलाफ़ एससी/एसटी एक्ट के तहत अब तक मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है.
इस एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज न होने की वजह से तीनों शिक्षकों को अब तक गिरफ़्तार नहीं किया गया है.
इस पहलू पर सवाल पूछे जाने पर जांच में शामिल एक पुलिस अधिकारी ने बीबीसी हिंदी को बताया कि मामला गंभीर है, जांच जारी है और कुछ और सबूत सामने आने पर अन्य धाराओं में भी मुकदमा दर्ज हो सकता है.
शिमला के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संजीव गांधी ने बीबीसी हिंदी से कहा, "मामला हमारे ध्यान में है और इसकी जांच जारी है. किसी भी अपराधी को बख़्शा नहीं जाएगा."
शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सभी आरोपों की जांच की जा रही है. पुलिस की जांच के अलावा विभाग भी अपने स्तर पर जांच कर रहा है. उन्होंने कहा, "यह एक गंभीर आरोप है, जिसकी जांच की जा रही है."
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इस घटना ने राजनीतिक हलचल भी पैदा की है.
उत्तर प्रदेश के नगीना से सांसद और आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर मामले पर चिंता जताई.
उन्होंने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री से मांग की है कि तीनों आरोपियों को तत्काल निलंबित कर गिरफ़्तार किया जाए. पीड़ित बच्चे को सरकारी सुरक्षा, इलाज और मुआवज़ा दिया जाए, साथ ही घटना की स्वतंत्र जांच हो और दोषियों पर एससी/एसटी एक्ट के तहत सख़्त कार्रवाई की जाए.
वहीं हिमाचल प्रदेश में दलित अधिकार कार्यकर्ता राजेश कोष का कहना है कि यह मामला दलित बच्चों के ख़िलाफ़ स्कूलों में भेदभाव और हिंसा की गंभीर समस्या को उजागर करता है.
उन्होंने कहा, “पुलिस और शिक्षा विभाग की जांच से उम्मीद है कि सच्चाई सामने आएगी और दोषियों को दंड मिलेगा.”
हिमाचल में दलितों पर अत्याचार के मामलेएनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में राज्य में एससी के ख़िलाफ़ अत्याचार के 252 मामले दर्ज हुए, जिनमें एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत 30 मामले शामिल थे.
इससे पिछले साल यानी 2022 में यह संख्या 210 थी. इनमें से अधिकांश मामले अदालतों में लंबित हैं.
जातिगत भेदभाव को लेकर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक ऐसे मामलों में पीड़ितों को न्याय मिलने की दर बेहद कम होती है.
जातिगत भेदभाव के ख़िलाफ़ काम करने वाली एनजीओ पीपल्स एक्शन फॉर पीपल इन नीड के संस्थापक कुलदीप वर्मा कहते हैं, "जाति-आधारित भेदभाव और अत्याचारों के ख़िलाफ़ कई नियम हैं, लेकिन पुलिस इन क़ानूनों को सख़्ती और प्रभावी ढंग से लागू नहीं करती है. ज़्यादातर मामलों में पुलिस आरोपियों का पक्ष लेती है और जब क़ानून का कोई डर नहीं होता, तो निचली समझे जाने वाली जातियों पर अत्याचार होना तय है."
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