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1971 की जंग में कराची पर हमले में रॉ के जासूसों की क्या थी भूमिका - विवेचना

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INDIAN NAVY 1971 की जंग शुरू होने से पहले भारतीय नौसेना को कराची बंदरगाह पर एक अत्याधुनिक सर्विलांस सिस्टम की ख़बर पता चली थी (सांकेतिक तस्वीर)

सन 1971 में भारत और पाकिस्तान की लड़ाई शुरू होने से क़रीब दो महीने पहले दिल्ली में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी जिसमें तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम, नौसेनाध्यक्ष एडमिरल एसएम नंदा और भारतीय ख़ुफ़िया एंजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के प्रमुख रामनाथ काव शामिल हुए थे.

भारतीय नौसेना को ख़ुफ़िया सूचना मिली कि पाकिस्तान ने कराची बंदरगाह पर एक अत्याधुनिक नौसैनिक सर्विलांस सिस्टम लगाया है.

एडमिरल नंदा ने काव से पूछा कि क्या आप अपने सूत्रों से इस बारे में और सूचनाएं उपलब्ध करा सकते हैं?

काव को अंदाज़ा था कि उन्हें पाकिस्तानी सर्विलांस सिस्टम की क्षमताओं को जाँचने के लिए वहाँ की तस्वीरों की ज़रूरत होगी. इस तरह की जानकारी मामूली जासूस नहीं जमा कर सकते थे. इसके लिए स्पेशल एक्सपर्ट जासूसों की ज़रूरत थी.

image HARPER COLLINS रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के तत्कालीन प्रमुख रामनाथ काव गुप्त मिशन के लिए डॉक्टर का जहाज़ चुना गया image BBC

काव के डिप्टी संकरन नायर ने इसके लिए बंबई में रॉ के चोटी के जासूस से संपर्क कर उसे इस मिशन की ज़िम्मेदारी सौंपी.

पाँच दिन बाद उस एजेंट ने नायर से संपर्क कर उन्हें अपना प्लान बताया और ये भी कहा कि वो एक ऐसे शख़्स को जानता है जो इसमें मददगार हो सकता है. नायर इस योजना को अंतिम रूप देने के लिए ख़ुद बंबई गए.

नायर अपनी आत्मकथा 'इनसाइड आईबी एंड रॉ, द रोलिंग स्टोन दैट गैदर्ड मास' में लिखते हैं, "मुझे मेरे बंबई के एजेंट ने बताया कि इस काम में मेरी मदद वहाँ रहने वाले पारसी डॉक्टर कावसजी कर सकते थे, जो काम के सिलसिले में अपने जहाज़ से कुवैत होते हुए पाकिस्तान जाया करते हैं."

दिलचस्प बात है कि ये किसी को नहीं पता कि कावसजी के जहाज़ को पाकिस्तानी अपने बंदरगाह पर क्यों और कैसे आने देते थे.

उनके अनुसार, "इसकी वजह शायद ये थी कि कावसजी का परिवार 1880 के दशक से शिपिंग के कारोबार में था, वे कराची पोर्ट से ऑपरेट करते थे, उनका परिवार भी कराची में रहता था, देश के विभाजन के बाद भी इस समृद्ध पारसी परिवार के लोग कराची में भी थे और बंबई में भी."

"दो महीने पहले कावसजी एक मुसीबत में फंस गए थे जब बंबई के कस्टम अधिकारियों ने उनके जहाज़ पर अघोषित माल पकड़ लिया था. अब उनके ख़िलाफ़ कस्टम की एक जाँच चल रही थी. संभावना थी कि डॉक्टर को इसके लिए एक बड़ा जुर्माना देना पड़ेगा. मुझे पता था कि मुझे क्या करना है."

image MANAS PUBLICATION संकरन नायर की आत्मकथा 'इनसाइड आईबी एंड रॉ, द रोलिंग स्टोन दैट गैदर्ड मास' संकरन और कावसजी की मुलाक़ात

बंबई कस्टम का प्रमुख संकरन नायर का दोस्त था. उन्होंने फ़ोन उठाकर उनका नंबर डायल किया. सामान्य शिष्टाचार के बाद नायर ने उन्हें अपनी समस्या बताई.

10 मिनट बाद तय हो गया कि रॉ अपने गुप्त फ़ंड से डॉक्टर पर लगाए जाने वाले जुर्माने की रक़म अदा करेगा और कस्टम विभाग एक पत्र के ज़रिए बताएगा कि डॉक्टर के ख़िलाफ़ मामला ख़त्म हो गया है.

उस पत्र के साथ नायर अपने दो भरोसेमंद जासूसों को लेकर डॉक्टर कावसजी के डीएन रोड स्थित क्लीनिक पर गए.

उन्होंने भारतीय नौसेना के कमांडर मेनन के तौर पर अपना परिचय कराया. उन्होंने डॉक्टर से कहा, "मैं आपको कस्टम विभाग का ये पत्र दे सकता हूँ जिसमें लिखा है कि आपके ख़िलाफ़ मामला वापस ले लिया गया है, बशर्ते आप मेरा एक छोटा सा काम कर दें."

कमांडर मेनन बने संकरन नायर ने डॉक्टर से कहा, "आप इसके लिए मना भी कर सकते हैं. उस स्थिति में मैं इस पत्र को जला दूँगा और आप के ख़िलाफ़ जाँच शुरू हो जाएगी."

डॉक्टर कावसजी को अंदाज़ा हो गया कि उनके पास नायर के प्रस्ताव को मानने के सिवा और कोई विकल्प नहीं है.

image RK YADAV रॉ के उप प्रमुख रहे संकरन नायर कावसजी रॉ के दो जासूसों के साथ कराची रवाना हुए

अनुषा नंदाकुमार और संदीप साकेत अपनी किताब 'द वॉर दैट मेड आर एंड ए डब्ल्यू' में लिखते हैं, "डॉक्टर कावसजी ने नायर से कहा आप मुझसे क्या चाहते हैं? नायर ने कहा कि आप पाकिस्तान की अपनी अगली यात्रा पर अपने जहाज़ में मेरे दो आदमी लेकर जाएंगे. ये यात्रा दो दिन बाद शुरू होगी. डॉक्टर ने उनसे पूछा कम से कम मुझे उन लोगों के नाम तो बता दीजिए. नायर ने कहा कि उनका नाम 'रॉड' और 'मॉरियार्टी' है. उनका असली नाम राव और मूर्ति था. राव नायर के नेवल असिस्टेंट थे जबकि मूर्ति रॉ के फोटोग्राफ़ी विभाग के विशेषज्ञ थे."

दो दिन बाद योजना के अनुसार कावसजी अपने दो नए साथियों 'रॉड' और 'मॉरियार्टी' के साथ पानी के छोटे जहाज़ से कराची के लिए रवाना हुए. पाकिस्तानी जल क्षेत्र में घुसने तक कोई ख़ास घटना नहीं हुई.

अनुषा और संदीप अपनी किताब में लिखते हैं, "तब तक पाकिस्तानियों को पता चल चुका था कि भारत ने एक नई ख़ुफ़िया एजेंसी बनाई है जिसमें साहसी और मुश्किल मिशन पूरा करने की क्षमता है. उनको अब तक नई एजेंसी का नाम पता नहीं चल पाया था."

image Getty Images जहाज़ में पाकिस्तानी सीआईडी इंस्पेक्टर तलाशी के लिए चढ़ा तो कावसजी के हाथ-पांव फूल गए (सांकेतिक तस्वीर) दोनों जासूस बीमारों के केबिन में

जैसे ही कावसजी का जहाज़ कराची बंदरगाह पर लगा पाकिस्तानी सीआईडी के इंस्पेक्टर अपने दो साथियों के साथ उनके जहाज़ पर चढ़ गए. उन्हें देखते ही डॉक्टर नर्वस हो गए. मिनटों में पाकिस्तानी अफ़सरों ने जहाज़ का निरीक्षण किया. जब उन्हें काग़ज़ात में दर्ज दो लोग अपनी बर्थ पर नहीं मिले तो उन्होंने उनके बारे में पूछताछ की.

अनुषा नंदाकुमार और संदीप साकेत लिखते हैं, "ये लोग जहाज़ में ही छिपे हुए थे क्योंकि ये लोग नहीं चाहते थे कि इंस्पेक्टरों की नज़र उन पर पड़े. इंस्पेक्टर ने पूछ ही डाला, 'वो लोग कहाँ हैं?' कावसजी ने कहा 'सिक बे' यानी बीमारों के कमरे में हैं. इंस्पेक्टर ने अपने मातहतों से कहा, 'वहाँ जाओ और उन्हें चेक करो'."

"इस पर डॉक्टर ने कहा, 'मैं आपको इसकी सलाह नहीं दूँगा. ये दोनों चिकनपॉक्स के मरीज़ हैं. सफ़र के दौरान पहले एक को ये बीमारी लगी. उससे दूसरे को भी लग गई. हमने उन्हें अलग-थलग कर तब तक के लिए सिक-बे में डाला है जब तक वो ठीक नहीं हो जाते.' इंस्पेक्टर ने डॉक्टर की बात मान ली."

"कावसजी का कराची आना-जाना लगा रहता था. उनके पास उसका अविश्वास करने का कोई कारण नहीं था. जैसे ही इंस्पेक्टर जहाज़ से नीचे उतरे कावसजी की जान में जान आई."

image HARPER COLLINS अनुषा नंदाकुमार और संदीप साकेत की किताब 'द वॉर दैट मेड आर एंड ए डब्ल्यू' जासूसों ने कराची बंदरगाह की तस्वीरें लीं image BBC

आधी रात को कावसजी के जहाज़ ने फिर चलना शुरू किया और थोड़ी देर मे वो बंदरगाह के प्रवेश द्वार पर दो चट्टानों के बीच पहुंच गया. ये जगह पहले से तय कर ली गई थी. 'रॉड' और 'मॉरियार्टी' ने पोर्टहोल्स से अपने कैमरों के साथ तस्वीरें लेनी शुरू कर दीं.

वाइस एडमिरल जीएम हीरानंदानी अपनी किताब 'ट्रांसिशन टू ट्रायम्फ़ (1965-1975)' में लिखते हैं, "रॉ के एजेंटों ने पहले एक दूसरे को देखा और फिर अपने सामने लक्ष्य को देखा. रॉड ने कहा लगता है इसको हाल में बनाया गया है. ये वाक़ई हाल ही में बना था और उसके ऊपर विमान भेदी तोपें रखी गई थीं."

"इसका मतलब ये था कि पाकिस्तान कराची बंदरगाह को युद्ध के लिए तैयार कर रहा था. तेज़ी से काम करते हुए दोनों एजेंटों ने उस जगह की दर्जनों तस्वीरें खीचीं."

"जहाँ ज़रूरत पड़ी उन्होंने लेंस को ज़ूमकर तोपों और हर तरह की किलेबंदी को भी अपने कैमरे में उतारा. इसके अलावा उन्होंने बंदरगाह पर लंगर डाले हुए पाकिस्तानी नौसेना के जहाज़ों की भी तस्वीर ली."

image BHARATRAKSHAK.COM कराची के बंदरगाह पर कई जहाज़ खड़े थे (सांकेतिक तस्वीर) दिल्ली में तस्वीरों का अध्ययन

"क़रीब आधे घंटे बाद जहाज़ के चालकों से वापस मुड़ने के लिए कहा गया. इसके बाद दोनों ख़ुफ़िया एजेंट दोबारा सिक-बे में चले गए जहाँ वो अगले दिन तक रहे. एक दिन बाद उस जहाज़ ने कराची बंदरगाह छोड़ दिया. जब जहाज़ बंदरगाह से बाहर निकलने लगा तो फ़ोटोग्राफ़रों ने चट्टान के दूसरे तरफ़ की तस्वीरें भी खींचीं. इसके बाद जहाज़ अरब सागर में चला गया और कुवैत की तरफ़ बढ़ गया."

कुवैत पहुंचते ही राव और मूर्ति जहाज़ से उतर गए और सीधे भारतीय दूतावास गए. वहाँ से कराची से लाई गई कैमरे की फ़िल्में दिल्ली भेजी गईं. अगले दिन राव और मूर्ति हवाई जहाज़ से दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

अनुषा नंदाकुमार और संदीप साकेत ने लिखा, "वॉर रूम में जगजीवन राम, रामनाथ काव और एडमिरल नंदा ने उन तस्वीरों का अध्ययन किया. मूर्ति ने उन्हें कराची हार्बर का 360 डिग्री का दृश्य दिखलाया. वहाँ मौजूद हर व्यक्ति ने उन तस्वीरों को आश्चर्य और प्रशंसा के भाव से देखा."

"ये पहली बार था जब कराची बंदरगाह के अंदर की तस्वीरें भारत के हाथ लगी थीं. अब भारतीय नौसेना को पता चल गया था कि पाकिस्तान ने किन-किन जगहों पर रक्षात्मक ढाँचे खड़े किए हैं और उनकी क्षमता क्या है."

image Getty Images तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम

उनको ये भी पता चल गया कि किस जगह पर ईंधन का भंडारण किया गया है और कौन-कौन से नौसैनिक जहाज़ कराची में खड़े हुए हैं.

तीन दिसंबर, 1971 को जब युद्ध की आधिकारिक घोषणा हुई उससे पहले भारत के पास कराची बंदरगाह का पूरा नक्शा पहुंच चुका था. पकिस्तान ने अपनी सबसे अच्छी डॉल्फ़िन क्लास की पनडुब्बियों को तैनात कर रखा था. उनके 8000 नौसैनिकों में सिर्फ़ 5000 को युद्ध मे लगाया गया था.

एडमिरल नंदा अपनी किताब 'द मैन हू बॉम्ब्ड कराची' में लिखते हैं, "लड़ाई शुरू होते-होते पाकिस्तानी नौसेना के सैनिकों की संख्या और कम हो चुकी थी क्योंकि बंगाली सैनिक या तो नौसेना छोड़कर भाग गए थे या पाकिस्तानियों का उनके ऊपर से विश्वास उठ गया था."

"याह्या खाँ का रवैया ये था कि 29 नवंबर तक उन्होंने पाकिस्तानी नौसेनाध्यक्ष तक को ये बताना उचित नहीं समझा था कि चार दिन में लड़ाई शुरू होने वाली है."

image Getty Images पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खाँ एडमिरल नंदा ने इंदिरा गांधी से ली अनुमति image BBC

3 दिसंबर, 1971 को जब भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई शुरू हुई तो भारतीय नौसेना ने कराची पर हमला करने की अपनी योजना को अंजाम देना शुरू कर दिया था.

इससे पहले अक्तूबर में एडमिरल नंदा इंदिरा गाँधी से मिलने गए थे.

उन्होंने नौसेना की तैयारियों के बारे में बताने के बाद इंदिरा गाँधी से पूछा था अगर नौसेना कराची पर हमला करे तो क्या इससे सरकार को राजनीतिक रूप से कोई आपत्ति हो सकती है?

नंदा अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, "इंदिरा ने हाँ या न कहने के बजाए मुझसे ही सवाल पूछ डाला, 'आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?' मैंने जवाब दिया, 'सन 1965 में नौसेना से ख़ासतौर से कहा गया था कि वो भारतीय समुद्री सीमा के बाहर कोई कार्रवाई न करे, जिससे हमारे सामने कई समस्याएं उठ खड़ी हुई थीं'."

"इंदिरा ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, 'वेल एडमिरल, इफ़ देअर इज़ अ वॉर, देअर इज़ अ वॉर.' यानी अगर युद्ध है तो युद्ध है. मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा, 'मैडम मुझे मेरा जवाब मिल गया'."

image ADMIRAL NANDA FAMILY एडमिरल एसएम नंदा, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ (फ़ाइल फ़ोटो) पाकिस्तान का ध्यान भटकाया गया

कराची पर नौसैनिक हमले से पहले भारतीय वायुसेना ने कराची, माहिर और बादिन के हवाई ठिकानों पर बम गिराने शुरू कर दिए थे. वो कराची बंदरगाह पर भी लगातार बम गिरा रहे थे.

एडमिरल नंदा लिखते हैं, "दरअसल, ये योजना के तहत हो रहा था ताकि पाकिस्तान का ध्यान हवाई लड़ाई की तरफ़ चला जाए और वो इसका अंदाज़ा भी न लगा सके कि हमारे पोत एक निर्धारित लक्ष्य के साथ कराची की तरफ़ बढ़ रहे हैं."

"मैं कराची को अपने हाथ की हथेली की तरह जानता था क्योंकि मेरा बचपन वहाँ बीता था. दूसरे हमारे ख़ुफ़िया सूत्रों ने वहां की प्रामाणिक जानकारी हम तक पहुंचाई थी."

"मैंने अपने स्टाफ़ से कहा था कि वो इस बात का मूल्यांकन करें कि क्लिफ़्टन और किमारी बंदरगाह के बीच तेल के भंडार को निशाना बनाना कितना कारगर हो सकता है."

image Harper Collins एडमिरल नंदा की किताब 'द मैन हू बॉम्ब्ड कराची' कराची पर मिसाइल बोट से हमला

सन 1971 के शुरू में ही भारत को सोवियत संघ से ओसा-1 मिसाइल बोट मिल गई थी.

इनको तटीय रक्षण के लिए डिज़ाइन किया गया था लेकिन नौसेना के कमांडरों ने इनका इस्तेमाल कराची पर हमले के लिए करने का फ़ैसला किया.

जब वायुसेना के युद्धक विमान कराची पर बमबारी कर रहे थे, तीन ओसा-1 मिसाइल बोट्स ने कराची की तरफ़ बढ़ना शुरू किया. इसको ऑपरेशन ट्राइडेंट का नाम दिया गया जिसका लक्ष्य था कराची बंदरगाह को बर्बाद करना.

तीन मिसाइट बोट्स को खींचकर पाकिस्तानी जल सीमा के पास ले जाकर कराची से 250 किलोमीटर की दूरी पर छोड़ दिया गया.

image INDIAN NAVY कराची पर हमला करने वाली मिसाइल बोट (फ़ाइल फ़ोटो)

अनुषा नंदाकुमार और संदीप साकेत लिखते हैं, "सबसे पहले मिसाइल बोट ने पाकिस्तान के पोत पीएनएस ख़ैबर को डुबोया. उनको ये अंदाज़ा ही नहीं लगा कि ये हमला कहाँ से हुआ. वो समझे कि उन पर भारतीय वायुसेना के विमानों ने हमला किया है."

साकेत लिखते हैं, "उसके बाद दूसरी मिसाइल बोट ने एक और विध्वंसक और पाकिस्तानी सेना के लिए हथियार ले जा रहे मालवाहक जहाज़ को डुबोया. तीसरी मिसाइल ने कराची बंदरगाह को निशाना बनाते हुए तेल टैंकों पर हमला किया. इस हमले में राव और मूर्ति की खींची तस्वीरों ने उनकी बहुत मदद की."

इस हमले ने पाकिस्तानी नौसेना की लड़ने की क्षमता एक तरह से समाप्त कर दी. ईंधन की कमी और इस हमले की वजह से पाकिस्तानी नौसेना ने अपने सारे जहाज़ वापस बुलाकर उन्हें कराची बंदरगाह की रक्षा में लगा दिया.

इसके कुछ दिन बाद ऑपरेशन पाइथन भी शुरू किया गया जिसमें कराची बंदरगाह की नौसैनिक नाकाबंदी कर दी गई. इस नाकाबंदी का उद्देश्य पश्चिमी पाकिस्तान को पूर्वी पाकिस्तान से पूरी तरह अलग-थलग कर देना था जो पूरी तरह से कामयाब रहा.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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