बनास नदी पर बना और कभी विकास का प्रतीक माना जाने वाला मातृकुंडिया डैम अब इलाके के किसानों के लिए सिरदर्द बन गया है। इस साल अपनी भरने की क्षमता तक पहुंचने के बाद, डूब क्षेत्र के गांवों में लीकेज और पानी भरने की समस्या गंभीर हो गई है। धूलखेड़ा, जवासिया, देवपुरा, गुरजनिया, गिलुंड और कुंडिया समेत कई गांवों के किसान अब अनिश्चित समय के लिए विरोध करने की तैयारी कर रहे हैं। किसानों ने कहा है कि अगर उन्हें उनके नुकसान का मुआवजा और उनके हक का पानी नहीं मिला, तो वे 15 अक्टूबर से मातृकुंडिया डैम पर धरना शुरू कर देंगे।
अंडरग्राउंड लीकेज, खेतों में तबाही
बुधवार शाम को गिलुंड के पंचमुखी बालाजी मंदिर में प्रभावित गांवों के प्रतिनिधियों की एक ग्रुप मीटिंग हुई। किसानों ने बताया कि जैसे ही डैम का पानी का लेवल बढ़ता है, आसपास के खेतों में अंडरग्राउंड लीकेज होने लगता है। इस लीकेज के कारण खेतों में लगातार पानी भरने से खरीफ की फसलें पूरी तरह सड़ गई हैं और बर्बाद हो गई हैं। कई खेतों में इतनी काई जम गई है कि आने वाले रबी की बुआई के मौसम पर खतरा मंडरा रहा है। गांवों के कुछ हिस्सों में पानी घरों में भी घुस गया है, जिससे दीवारों में सीलन आ गई है और घरों को नुकसान हुआ है। गांववालों के मुताबिक, प्रशासन हर बार भरोसा देता है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।
हर साल सैकड़ों एकड़ ज़मीन डूब जाती है
गिलुंड, कुंडिया, खुमाखेड़ा, टीलाखेड़ा और कोलूपारा जैसे गांवों की सैकड़ों एकड़ ज़मीन हर साल डैम से ज़्यादा पानी आने की वजह से डूब जाती है। किसानों का कहना है कि कई खेत, भले ही वे सरकारी बाढ़ क्षेत्र में न आते हों, लेकिन डैम के तय लिमिट से ज़्यादा भर जाने की वजह से हर साल डूब जाते हैं। किसानों का आरोप है कि राजनीतिक दबाव में हर साल डैम का पानी का लेवल बढ़ा दिया जाता है। इससे न सिर्फ़ खेती का नुकसान होता है, बल्कि पशुपालकों के लिए चारे का भी गंभीर संकट पैदा हो जाता है।
डैम भर गया है, लेकिन गांवों तक पानी नहीं पहुंचा है।
बैठक में गांववालों ने एक और गंभीर मुद्दा उठाया - पानी के बंटवारे के सिस्टम में भेदभाव। मातृकुंडिया डैम की कुल स्टोरेज कैपेसिटी 1168 mcft है। इसमें से 50 mcft पानी नदी रिचार्ज के लिए छोड़ा जाता है, और 170 mcft पानी रेलमगरा और गंगापुर तालुका में सिंचाई और पीने के पानी के इस्तेमाल के लिए रखा जाता है। लेकिन, किसानों का कहना है कि यह पानी कभी गांवों तक नहीं पहुंचता। खेतों के लिए नहरों में पानी नहीं छोड़ा जाता, न ही तालाब भरे जाते हैं। इस वजह से लीकेज से गांव वालों को नुकसान तो होता है, लेकिन उन्हें कोई फायदा नहीं मिलता। हमारे खेत बाढ़ के इलाके में हैं, और फसलें बर्बाद हो जाती हैं, फिर भी हमें न तो मुआवजा मिलता है और न ही सिंचाई का पानी। यह दोहरा नुकसान है।
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