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Bundi रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में पहले भी तेरह बाघों की हो चुकी है मौत

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बूंदी न्यूज़ डेस्क, बूंदी    रामगढ़ विषधारी के जंगल में वर्ष 1982 से 1999 के बीच13 बाघों की मौत हो चुकी है। उस समय इसे वन्यजीव अभयारण्य का ही दर्जा मिला हुआ था। 13 बाघों वाला अभयारण्य 17 वर्षो में ही बाघ विहीन हो गया था। वहीं अब पहले शावक लापता हुआ, अब मां भी मारी गई। फिर पहले जैसी स्थिति नहीं हो जाए और रामगढ़ विषधारी बाघ विहीन हो जाए।बाघों के जच्चा घर रहे रामगढ़ विषधारी अभयारण्य में मंगलवार को गोर्वधन पहाड़ी की कराई बांदरा पोल के पास बाघिन का कंकाल मिला है। वह स्थान बाघों के घर हुआ करता था। टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित होने से पूर्व वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा मिला हुआ था। अरावली की पहाड़ियों के बीच वन्यजीवों की भरमार को देखते हुए 307 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले सघन जंगल को आज से 42 वर्ष पहले वर्ष 1982 में वन्य जीव अभ्यारण्य का दर्जा दिया था। 1982 की वन्य जीवों की गणना में रामगढ़ के जंगल में 13 बाघों व 90 पैंथर की उपस्थिति बताई गई थी। वन्य जीव अभयारण्य दर्जा मिलने के दो वर्ष बाद ही बाघों की संख्या में कमी आती गई। 1999 की गणना में बाघ लुप्त हो चुके।

टाइगर रिजर्व का दर्जा मिलने के बाद भी बेहाल

टाइगर रिजर्व घोषित होने के बाद बाघ आए तो खूब स्वागत हुआ, कुनबा बढाने के लिए रानी को लाया गया तो रामगढ़ में स्वागत में खुशी मनाई गई। रानी ने कुनबा बढाने के लिए तीन शावकों को जन्म दिया तो रामगढ़ में खुशियों की किलकारियां गूंज उठी। बाघों के कुनबा बढा तो जिम्मेदारों ने खूब वाही-वाही लूटी, लेकिन सुरक्षा व ट्रेकिंग की यहां कोई गारंटी नही दे पाए। बाघिन ने आते ही दो शावकों को जन्म दिया। वे कहा गए इसका पता नहीं बता सके। फिर दूसरी बार तीन शावकों को जन्म देकर कुनबा बढाया, लेकिन जन्म के कुछ माह बाद ही एक शावक लापता हो गया। उसको यह ढूंढ नहीं पाए, इसी बीच मंगलवार को खबर आई कि कुनबा बढ़ाने वाली बाघिन भी इस दुनिया में नहीं रही। उसकी निशानी के नाम पर कंकाल ही मिल पाए। कई दिनों से लापता थी।खोजने तक नहीं गए। बाघिन के बचे हुए कुनबे की सुरक्षा व ट्रेकिंग की आगे भी कोई गारंटी नहीं है। बाघों की सुरक्षा के लिए टाइगर रिजर्व का मुख्य कार्यालय बूंदी की बजाए रामगढ़ में स्थापित हो। तब ही उचित सुरक्षा व ट्रेकिंग हो पाएगी।

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